कविता / जीवन-दर्शन
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न आलस्य है, और न उत्साह है,
ये जो जीवन है, कर्म-प्रवाह है!
जीते जाना है, जब तक है जीवन,
है करते रहना, कर्म-निर्वाह है!
किसी का किसी से संबंध नहीं,
हरेक की भूमिका, या कोई चाह है!
इसे भाग्य, कर्तव्य, या संघर्ष कहें,
हँसी, सुख की, या कि दुःख की आह है!
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