कविता / 20-03-2022
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हाँ, सब कुछ यूँ तो विचार ही है,
किन्तु विचार सब कुछ तो नहीं है!
विचार आता है, चला भी जाता है,
विचार जिसमें आता-जाता है,
क्या वो भी आता-जाता है?
अगर वो भी आता-जाता हो तो,
फिर जिसे पता है, -वह क्या है?
ये पता होना, और इसका भी पता नहीं होना,
और इस पता न होने, का भी पता नहीं होना,
इस पता होने, और पता न होने, के बीच,
उठता और उभरता है कोई विचार,
जो कभी पुराना या नया नहीं होता,
जो एक या अनेक भी नहीं होता है,
फिर भी हर टुकड़ा एक होता है!
और छा जाता है, -अन्धेरे की तरह,
उमड़ता-घुमड़ता रहता है, -अपने ही में,
और बरसता है बरसात के बादल की तरह।
खुद ही से उपजता है, खुद ही उपजाता है,
खुद से खुद उसका, क्या अजीब नाता है!
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