August 08, 2017

’आधार’ : प्रासंगिकता और औचित्य

’आधार’ : प्रासंगिकता और औचित्य
जिसके पास ’आधार’ नहीं, क्या वह ’अजन्मा’ है?
क्या उसका जन्म नहीं हुआ?
एक अक्टूबर से '17 से तो उसकी मृत्यु भी नहीं होगी!
क्योंकि ’आधार’ न होने पर उसका मृत्यु प्रमाण-पत्र भी जारी न हो सकेगा !
अजन्मा, अमर, आधार से वंचित निराधार .....!
’आधार’ के दो पहलू
यह ज़रूरी है कि सरकारी योजनाओं का लाभ वंचित और पात्र नागरिकों तक अवश्य पहुँचे, और इसलिए यह आवश्यक है कि उनकी ’पहचान’ सुनिश्चित हो । इसके लिए बायोमीट्रिक सूचना का संग्रह सर्वाधिक सहायक साधन हो सकता है । लेकिन इसके भी दो पहलू, अपने हानि-लाभ हैं । और जो व्यक्ति लाभ लेना चाहता है, उसे संभावित ’हानि’ की रिस्क तो लेनी ही होगी क्योंकि कोई ’सूचना’ पूर्णतः सुरक्षित होने का दावा नहीं किया जा सकता । किसी भी सूचना-प्रणाली में ही उसमें संचित की जानेवाली जानकारी को रिट्राइव करने के सूत्र प्रकट और अप्रकट रूप से छिपे होते ही हैं । यह संभव है कि वन-टाइम-पासवर्ड जैसे साधनों से उसे यथासंभव सुरक्षित रखा जा सके किंतु दूसरे अन्य रास्ते भी अवश्य होते ही हैं ।
नागरिक-अधिकार और नागरिक-दायित्व परस्पर निहित होते ही हैं ।
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जो नागरिक ’आधार’ से वंचित है या किन्हीं कारणों से इसका उपयोग नहीं करना चाहता, क्या उसे उसके दूसरे नागरिक-अधिकारों से वंचित किया जा सकता है? और, क्या उसे उसके दूसरे नागरिक-अधिकारों से वंचित किया जाना न्यायसंगत है?
उदाहरण के लिए बैंक में खाता रखना या डेबिट-क्रेडिट कार्ड, वाहन-चालक (ड्राइविंग) लायसेंस आदि का उपयोग करने से उसे वंचित करना क्या उसके मौलिक अधिकार का हनन नहीं होगा?
क्या एक ’संन्यासी’ को हर समय और हर स्थान पर अपनी ’पहचान’ देना उसका दायित्व है? क्या यह ’व्यवस्था’ का ही दायित्व नहीं है कि वह किसी भी ’संदिग्ध’ व्यक्ति की स्वतंत्र जानकारी सुनिश्चित कर अपने लिए सुरक्षित कर ले? ज़रूरी नहीं कि इसके लिए उससे प्रत्यक्ष संपर्क किया ही जाए । वह जिन लोगों से मिलता-जुलता है, जहाँ आता-जाता है, वहाँ के लोगों के माध्यम से भी यह सूचना एकत्र की जा सकती है । क्या रेल में यात्रा करने के लिए या होटल में कमरा बुक करने के लिए मेरा फ़ोटोग्राफ़ मेरा पर्याप्त प्रमाण नहीं है? क्या मेरे फ़ोटोग्राफ़ तथा मेरी इस आवश्यक जानकारी, जैसे नाम आदि की सत्यता की जाँच करना ’व्यवस्था’ का ही दायित्व नहीं है? हाँ इसके लिए उससे सहयोग करना मेरा भी दायित्व अवश्य है । क्या यही ’आधार’ की प्रासंगिकता और औचित्य की मर्यादा नहीं है?
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प्रसंगवश :
बढ़ती जनसंख्या और बढ़ते अपराधों को ध्यान में रखते हुए सरकार को सुरक्षा प्रणाली बनानी चाहिए । मगर आधार खुद निराधार है तो इसे कार्यान्वित कर कोई खास उपलब्धि हासिल नहीं होगी । कई नियमों का पालन नागरिकों को असुविधा में डाल सकता है ।
सरकार को ऐसे नियम बनाने चाहिए जिससे कम से कम असुविधा हो ।
1.सभी कार्यों के लिए एक पहचान-पत्र,
2.प्रति नागरिक एक ही फ़ोन नबर,
3.प्रति नागरिक एक ही बैंक अकाउंट
जो भी व्यक्ति किसी आर्थिक गतिविधि में जैसे शेयर-क़ारोबार, फ़ायनेन्सिंग, उसके पास अवश्य ही ’आधार’ होना चाहिए और उसे उसके ’आधार’ में दर्ज़ / रजिस्टर किया जाना क़ानूनन अनिवार्य हो ।  

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