August 01, 2017

नुक्‍ता-चीं है ग़मे-दिल ...

नुक्‍ता-चीं है ग़मे-दिल ...
कभी सोचता था कि हिंदी (या हिन्दी?) में नुकते के साथ प्रयुक्त होने वाले वर्णों वाले प्रचलित शब्दों की एक फ़ेहरिस्त बनाकर रखूँ । बस ख़याल ही रह गया । फिर सोचा कितने लोग याद रख सकते हैं ? हाँ शायद ’एडिटिंग’ के समय काम आ सकता है ।
बाय द वे, नुक्‍ता-चीं की व्युत्पत्ति का प्रयास किया तो हाथ लगा ’अनुक्त-चिह्न’ ।
वह बिंदु जिसका स्वतंत्र उच्चारण नहीं होता । संस्कृत व्याकरण की वैज्ञानिकता देखिए कि इस अनुक्त-चिह्न के लिए जो क तथा ख के साथ क़ और ख़ व तथा प और फ के साथ ~प तथा फ़ हो जाता है ’अनुक्‍त चिह्न’ के रूप में इसे स्थान दिया जाता है ।
यह ’प’ तथा ’~प’ व ’फ’ और ’फ़’ अरबी (और संभवतः फ़ारसी) में भी प्रयुक्त होता है, इसलिए ’पाकिस्तान’ और ’बाकीस्तान’ को अरबी में एक ही तरह से लिखा जाता है ।
शायद इसीलिए चचा ग़ालिब कह गए होंगे :
नुक़्ताचीं है ग़मे-दिल, उसको सुनाए न बने ।
क्या बने बात जहाँ बात बनाए न बने ....
--
इधर कोई ब्लॉग में इसे प्रस्तुत करने जा रहा हो तो शायद हिंदी (या हिन्दी?) का कुछ भला ही होगा !
अग्रिम शुभकामनाएँ !
--

No comments:

Post a Comment