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कुछ दिनों पहले एक मित्र ने एक वीडिओ पोस्ट किया था जिसके साथ चेतावनी थी कि इसे सतर्कता से देखें, क्योंकि हो सकता है इससे आपको धक्का लग सकता है ...
वीडिओ शुरू ही इंटरव्यू लेनेवाले के अंग्रेज़ी वाक्य से होता है जो अंग्रेज़ी में प्रश्न करता है :
" कुड यू स्पीक ए फ़्यू सेन्टेन्सेस इन इंग्लिश ...?"
अभी उसका वाक्य पूरा भी नहीं हुआ होता कि इंटरव्यू देनेवाला ऊँची आवाज़ में रोषपूर्वक हिंदी में गालियों की बौछार से जवाब देता हुआ उससे हिन्दी और बीच बीच में फ़र्राटेदार अंग्रेज़ी में बोलता हुआ यह दर्शाता है कि हमने पाँच साल (या ज़्यादा) कौन-कौन से पापड़ बेले, कितने प्रोजेक्ट्स किए, कितने प्रेज़ेन्टेशन दिये और आप बस एच.आर. में एम.बी.ए. कर यहाँ इन्टरव्यू लेने बैठ गए क्योंकि आप अंग्रेज़ी स्कूल (कॉन्वेन्ट) में पढ़े और हमने गरीबी में बड़ी कठिनाइयों से स्कूल और पी.ई.टी. की परीक्षाएँ पास कीं । पूरे वीडिओ में अन्त तक वही उग्रतापूर्वक यह दर्शाता है कि अंग्रेज़ी पढ़े-लिखे लोगों ने कैसे टेलेन्ट रखनेवालों के अवसर छीन लिए ।
यहाँ तक ठीक था लेकिन क्या अंग्रेज़ी पर अधिकारपूर्वक बोल सकने का यह अर्थ है कि अंग्रेज़ी की गालियों के पैबन्द (या ठिगले) भी बीच-बीच में जोड़े जाएँ?
हिन्दी और दूसरी भारतीय भाषाओं को सबसे अधिक नुक़्सान अंग्रेज़ी ने नहीं अंग्रेज़ी संस्कृति और सभ्यता ने पहुँचाया है । तमाम अंग्रेज़ी वल्गर शब्दों का प्रयोग धड़ल्ले से करने से आप भले ही खुद को स्मार्ट और डैशिंग समझ लें यह आक्रामकता न सिर्फ़ आपके आत्मविश्वास की कमी को दर्शाती है, बल्कि आपकी मानसिकता को भी बुरी तरह विकृत कर देती है । आज के युवा-युवतियों ने अंग्रेज़ी (भाषा) को अपनाया तो शायद यह वक़्त का तक़ाज़ा है किंतु अपनी संस्कृति और सभ्यता की अच्छाइयों की क़ीमत पर अंग्रेज़ी और उससे जुड़ी सांस्कृतिक और सभ्यताई बुराइयों को सीखना और उनका गर्वपूर्वक प्रदर्शन करना क्या आपके और पूरे समाज के लिए किसी भी प्रकार से हितकारी है?
यदि आप अंग्रेज़ी के वल्गर शब्दों का प्रयोग खुले आम करने में संकोच अनुभव नहीं करते तो आप स्त्री के लिए समाज में सम्मान की दृष्टि होने की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं? और निश्चित ही फ़िल्मों का भी इसमें बहुत बड़ा योगदान है । और यदि कोई स्त्री ’स्त्री-स्वतंत्रता’ के नाम पर ऐसे शब्दों का प्रयोग करने में संकोच अनुभव नहीं करती तो भी इससे समाज में क्या संदेश जाता है? लोग उस स्त्री को या दूसरी भी किन्हीं स्त्रियों को अगर गलत दृष्टि से देखने लगें तो क्या वह स्त्री भी स्वयं ही इसके लिए किसी हद तक ज़िम्मेवार नहीं है?
हिन्दी के लिए दुर्भाग्यजनक बात है कि राग दरबारी (श्रीलाल शुक्ल) से लेकर नामवर सिंह जैसे लोगों ने भी ’सर्वहारा’ और प्रगतिशीलता की आड़ और दंभ में साहित्य में अभद्र शब्दों का प्रयोग शुरु किया और कमलेश्वर जैसे लोगों ने भी इसे ही ’आधुनिक’ होना समझा ।
प्रश्न सिर्फ़ इतना है कि क्या इस प्रगतिशीलता से समाज में स्त्री का स्थान वाक़ई अधिक सुरक्षित अधिक सम्मानजनक हो पाएगा?
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कुछ दिनों पहले एक मित्र ने एक वीडिओ पोस्ट किया था जिसके साथ चेतावनी थी कि इसे सतर्कता से देखें, क्योंकि हो सकता है इससे आपको धक्का लग सकता है ...
वीडिओ शुरू ही इंटरव्यू लेनेवाले के अंग्रेज़ी वाक्य से होता है जो अंग्रेज़ी में प्रश्न करता है :
" कुड यू स्पीक ए फ़्यू सेन्टेन्सेस इन इंग्लिश ...?"
अभी उसका वाक्य पूरा भी नहीं हुआ होता कि इंटरव्यू देनेवाला ऊँची आवाज़ में रोषपूर्वक हिंदी में गालियों की बौछार से जवाब देता हुआ उससे हिन्दी और बीच बीच में फ़र्राटेदार अंग्रेज़ी में बोलता हुआ यह दर्शाता है कि हमने पाँच साल (या ज़्यादा) कौन-कौन से पापड़ बेले, कितने प्रोजेक्ट्स किए, कितने प्रेज़ेन्टेशन दिये और आप बस एच.आर. में एम.बी.ए. कर यहाँ इन्टरव्यू लेने बैठ गए क्योंकि आप अंग्रेज़ी स्कूल (कॉन्वेन्ट) में पढ़े और हमने गरीबी में बड़ी कठिनाइयों से स्कूल और पी.ई.टी. की परीक्षाएँ पास कीं । पूरे वीडिओ में अन्त तक वही उग्रतापूर्वक यह दर्शाता है कि अंग्रेज़ी पढ़े-लिखे लोगों ने कैसे टेलेन्ट रखनेवालों के अवसर छीन लिए ।
यहाँ तक ठीक था लेकिन क्या अंग्रेज़ी पर अधिकारपूर्वक बोल सकने का यह अर्थ है कि अंग्रेज़ी की गालियों के पैबन्द (या ठिगले) भी बीच-बीच में जोड़े जाएँ?
हिन्दी और दूसरी भारतीय भाषाओं को सबसे अधिक नुक़्सान अंग्रेज़ी ने नहीं अंग्रेज़ी संस्कृति और सभ्यता ने पहुँचाया है । तमाम अंग्रेज़ी वल्गर शब्दों का प्रयोग धड़ल्ले से करने से आप भले ही खुद को स्मार्ट और डैशिंग समझ लें यह आक्रामकता न सिर्फ़ आपके आत्मविश्वास की कमी को दर्शाती है, बल्कि आपकी मानसिकता को भी बुरी तरह विकृत कर देती है । आज के युवा-युवतियों ने अंग्रेज़ी (भाषा) को अपनाया तो शायद यह वक़्त का तक़ाज़ा है किंतु अपनी संस्कृति और सभ्यता की अच्छाइयों की क़ीमत पर अंग्रेज़ी और उससे जुड़ी सांस्कृतिक और सभ्यताई बुराइयों को सीखना और उनका गर्वपूर्वक प्रदर्शन करना क्या आपके और पूरे समाज के लिए किसी भी प्रकार से हितकारी है?
यदि आप अंग्रेज़ी के वल्गर शब्दों का प्रयोग खुले आम करने में संकोच अनुभव नहीं करते तो आप स्त्री के लिए समाज में सम्मान की दृष्टि होने की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं? और निश्चित ही फ़िल्मों का भी इसमें बहुत बड़ा योगदान है । और यदि कोई स्त्री ’स्त्री-स्वतंत्रता’ के नाम पर ऐसे शब्दों का प्रयोग करने में संकोच अनुभव नहीं करती तो भी इससे समाज में क्या संदेश जाता है? लोग उस स्त्री को या दूसरी भी किन्हीं स्त्रियों को अगर गलत दृष्टि से देखने लगें तो क्या वह स्त्री भी स्वयं ही इसके लिए किसी हद तक ज़िम्मेवार नहीं है?
हिन्दी के लिए दुर्भाग्यजनक बात है कि राग दरबारी (श्रीलाल शुक्ल) से लेकर नामवर सिंह जैसे लोगों ने भी ’सर्वहारा’ और प्रगतिशीलता की आड़ और दंभ में साहित्य में अभद्र शब्दों का प्रयोग शुरु किया और कमलेश्वर जैसे लोगों ने भी इसे ही ’आधुनिक’ होना समझा ।
प्रश्न सिर्फ़ इतना है कि क्या इस प्रगतिशीलता से समाज में स्त्री का स्थान वाक़ई अधिक सुरक्षित अधिक सम्मानजनक हो पाएगा?
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