आज की कविता : ’मैं’
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’मैं’ कभी भीड़ है,
’मैं’ कभी भेड़िया,
’मैं’ कभी भेड़ है,
’मैं’ कभी गड़रिया,
’मैं’ कभी नदिया है,
’मैं’ कभी है नैया,
’मैं’ कभी धारा भी,
’मैं’ किनारा भी कभी,
’मैं कभी एक भी,
’मैं’ कभी अनेक भी,
’मैं’ कभी बुरा भी,
’मैं’ कभी नेक भी!
’मैं’ कभी ’मैं’ है,
’मैं कभी ’तू’ है,
’मैं' कभी ’हम’ है,
’मैं' कभी आप भी!
’मैं’ से जुदा कोई,
दूसरा ’मैं’ कहाँ?
’मैं’ के सिवा कोई,
दूसरा ’मैं’ कहाँ?
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’मैं’ कभी भीड़ है,
’मैं’ कभी भेड़िया,
’मैं’ कभी भेड़ है,
’मैं’ कभी गड़रिया,
’मैं’ कभी नदिया है,
’मैं’ कभी है नैया,
’मैं’ कभी धारा भी,
’मैं’ किनारा भी कभी,
’मैं कभी एक भी,
’मैं’ कभी अनेक भी,
’मैं’ कभी बुरा भी,
’मैं’ कभी नेक भी!
’मैं’ कभी ’मैं’ है,
’मैं कभी ’तू’ है,
’मैं' कभी ’हम’ है,
’मैं' कभी आप भी!
’मैं’ से जुदा कोई,
दूसरा ’मैं’ कहाँ?
’मैं’ के सिवा कोई,
दूसरा ’मैं’ कहाँ?
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