साहित्य साधना
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पिछले दस-बीस सालों से जब से ’नेट’ का विस्तार हुआ है, अंग्रेज़ी का साम्राज्य ढहने लगा है, सभी दूसरी भारतीय और अन्य सभी भाषाओं में लिखनेवालों की प्रतिभा को अवसर मिला है कि अपनी-अपनी भाषा में अच्छा साहित्य लिखें । लेकिन बहुत से नए लेखकों की प्रतिभा अनेक कारणों से कुंठित होकर रह जाती है । सौभाग्य से हिंदी का साहित्य बहुत समृद्ध है और इसलिए नए रचनाकारों के लिए जहाँ अवसर भी अधिक हैं प्रतिस्पर्धा भी उतनी अधिक कठिन है । पता नहीं अवसर और प्रतिस्पर्धा का अनुपात स्थिर है या कम-ज्यादा होता रहता है लेकिन यदि कुछ बातों पर नए रचनाकार ध्यान दें तो जहाँ एक ओर उनकी रचनात्मकता में निखार आएगा, वहीं उन्हें इसका लाभ इस रूप में भी मिलेगा कि गुणात्मक स्तर पर उनकी प्रतिभा और भी परिष्कृत तथा विकसित होगी, उन्हें अधिक आत्म-संतोष मिलेगा । आनुषंगिक लाभ यह है कि इससे हिंदी भी समृद्ध होगी । साहित्य साधना अगर व्यवसाय है तो आप किन्हीं फ़ार्मूलों, तकनीकों और उपलब्ध साधनों से तात्कालिक तौर पर शायद सफल हो सकते हैं लेकिन उससे आपको संतोष प्राप्त होगा ही यह नहीं कहा जा सकता । इन फ़ार्मूलों, तकनीकों और उपलब्ध साधनों के बारे में आप स्थापित रचनाकारों से भी मार्गदर्शन ले सकते हैं किंतु आपको यह स्पष्ट होना चाहिए कि आपकी साहित्य-साधना आपको स्थायी संतुष्टि दे यह ज़रूरी नहीं ।
इसलिए अगर वस्तुतः आप एक संतुष्ट रचनाकार होने के बारे में सोचते हैं तो आपको पहले तो रचना के विषय से गहराई से जुड़ना होगा । आपको तदनुसार भाषा-शैली और विधा को सुनिश्चित करना होगा जैसे आप कविता में अपनी बात बेहतर ढंग से कह सकते हैं या कहानी या लेख में । आप अपनी रचना कितना विस्तार देते हैं कि आपकी बात अधिक से अधिक अच्छी तरह पाठकों तक पहुँच सके । एक छोटी, संक्षिप्त प्रखर रचना भी पाठक को झकझोरकर रख सकती है और एक लंबी रचना भी उसे बाँधे रख सकती है यदि आप उस रचना से वाक़ई गहराई से जुड़े हैं । किसी विशेष संदेश को अपनी रचना के माध्यम से पाठक तक पहुँचाने के भी अपने हानि-लाभ हो सकते हैं । केवल चौंकानेवाले वाक्यों से आप पाठक को थोड़ी देर के लिए प्रभावित तो कर सकते हैं लेकिन उसका मनोरंजन हो जाने पर वह और अधिक मनोरंजन की तलाश में लग जाएगा और जाने-अनजाने आपसे भी अपेक्षा करने लगेगा कि आप निरंतर नई चौंकानेवाली प्रस्तुतियाँ देते रहें ।
अभी दो-चार दिन पहले मैं एक शायर की शायरी यू-ट्यूब पर ’सुन’ और ’देख’ रहा था । हाँ उनकी शायरी चौंकाती ज़रूर थी लेकिन इससे अधिक वहाँ कुछ नहीं था । कुछ पाठक / श्रोता इतने में ही प्रभावित हो जाते हैं इस शायरी या ऐसे साहित्य में गहराई कितनी हो सकती है इसे संवेदनशील पाठक / श्रोता ही महसूस कर सकता है । लगभग ऐसा ही कुछ उन गायकों के साथ भी होता है जिनकी गायन-साधना और रियाज़ पर आश्चर्य होता है लेकिन व्हॉट नेक्स्ट? अच्छे से अच्छे कलाकार की साधना और तपस्या का सम्मान अवश्य ही होना चाहिए और होता भी है किंतु इसे तय करने का क्या कोई पैमाना हो सकता है? कलाकार जब कला को पेशेवर तौर से करता है तो यह कला और स्वयं उसका भी दुर्भाग्य है । यही बात साहित्यकार पर भी लागू होती है । शिल्पकार, चित्रकार या साहित्यकार जैसे ही अपनी रचना की ’बोली’ लगाता है उसी क्षण उसका मूल्य ’तय’ हो जाता है और वह बाज़ार की एक वस्तु हो जाती है । और आश्चर्य नहीं कि बहुत से साहित्यकार प्रतिष्ठा, सम्मान और ’पहचान’ स्थापित करने के प्रयास में अपनी रचनाधर्मिता के अमूल्य होने को भूल बैठते हैं । कला या साहित्य की महानता इसी में है कि आपने उसके माध्यम से जिसे अभिव्यक्त किया है उसे दर्शक / पाठक / श्रोता ने कितनी गहराई से अनुभव, -न कि उसका उपभोग किया है । यह ’उपभोग’ की दृष्टि वास्तव में रचनाकार और उसकी रचना को विनष्ट कर देती है ।
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पिछले दस-बीस सालों से जब से ’नेट’ का विस्तार हुआ है, अंग्रेज़ी का साम्राज्य ढहने लगा है, सभी दूसरी भारतीय और अन्य सभी भाषाओं में लिखनेवालों की प्रतिभा को अवसर मिला है कि अपनी-अपनी भाषा में अच्छा साहित्य लिखें । लेकिन बहुत से नए लेखकों की प्रतिभा अनेक कारणों से कुंठित होकर रह जाती है । सौभाग्य से हिंदी का साहित्य बहुत समृद्ध है और इसलिए नए रचनाकारों के लिए जहाँ अवसर भी अधिक हैं प्रतिस्पर्धा भी उतनी अधिक कठिन है । पता नहीं अवसर और प्रतिस्पर्धा का अनुपात स्थिर है या कम-ज्यादा होता रहता है लेकिन यदि कुछ बातों पर नए रचनाकार ध्यान दें तो जहाँ एक ओर उनकी रचनात्मकता में निखार आएगा, वहीं उन्हें इसका लाभ इस रूप में भी मिलेगा कि गुणात्मक स्तर पर उनकी प्रतिभा और भी परिष्कृत तथा विकसित होगी, उन्हें अधिक आत्म-संतोष मिलेगा । आनुषंगिक लाभ यह है कि इससे हिंदी भी समृद्ध होगी । साहित्य साधना अगर व्यवसाय है तो आप किन्हीं फ़ार्मूलों, तकनीकों और उपलब्ध साधनों से तात्कालिक तौर पर शायद सफल हो सकते हैं लेकिन उससे आपको संतोष प्राप्त होगा ही यह नहीं कहा जा सकता । इन फ़ार्मूलों, तकनीकों और उपलब्ध साधनों के बारे में आप स्थापित रचनाकारों से भी मार्गदर्शन ले सकते हैं किंतु आपको यह स्पष्ट होना चाहिए कि आपकी साहित्य-साधना आपको स्थायी संतुष्टि दे यह ज़रूरी नहीं ।
इसलिए अगर वस्तुतः आप एक संतुष्ट रचनाकार होने के बारे में सोचते हैं तो आपको पहले तो रचना के विषय से गहराई से जुड़ना होगा । आपको तदनुसार भाषा-शैली और विधा को सुनिश्चित करना होगा जैसे आप कविता में अपनी बात बेहतर ढंग से कह सकते हैं या कहानी या लेख में । आप अपनी रचना कितना विस्तार देते हैं कि आपकी बात अधिक से अधिक अच्छी तरह पाठकों तक पहुँच सके । एक छोटी, संक्षिप्त प्रखर रचना भी पाठक को झकझोरकर रख सकती है और एक लंबी रचना भी उसे बाँधे रख सकती है यदि आप उस रचना से वाक़ई गहराई से जुड़े हैं । किसी विशेष संदेश को अपनी रचना के माध्यम से पाठक तक पहुँचाने के भी अपने हानि-लाभ हो सकते हैं । केवल चौंकानेवाले वाक्यों से आप पाठक को थोड़ी देर के लिए प्रभावित तो कर सकते हैं लेकिन उसका मनोरंजन हो जाने पर वह और अधिक मनोरंजन की तलाश में लग जाएगा और जाने-अनजाने आपसे भी अपेक्षा करने लगेगा कि आप निरंतर नई चौंकानेवाली प्रस्तुतियाँ देते रहें ।
अभी दो-चार दिन पहले मैं एक शायर की शायरी यू-ट्यूब पर ’सुन’ और ’देख’ रहा था । हाँ उनकी शायरी चौंकाती ज़रूर थी लेकिन इससे अधिक वहाँ कुछ नहीं था । कुछ पाठक / श्रोता इतने में ही प्रभावित हो जाते हैं इस शायरी या ऐसे साहित्य में गहराई कितनी हो सकती है इसे संवेदनशील पाठक / श्रोता ही महसूस कर सकता है । लगभग ऐसा ही कुछ उन गायकों के साथ भी होता है जिनकी गायन-साधना और रियाज़ पर आश्चर्य होता है लेकिन व्हॉट नेक्स्ट? अच्छे से अच्छे कलाकार की साधना और तपस्या का सम्मान अवश्य ही होना चाहिए और होता भी है किंतु इसे तय करने का क्या कोई पैमाना हो सकता है? कलाकार जब कला को पेशेवर तौर से करता है तो यह कला और स्वयं उसका भी दुर्भाग्य है । यही बात साहित्यकार पर भी लागू होती है । शिल्पकार, चित्रकार या साहित्यकार जैसे ही अपनी रचना की ’बोली’ लगाता है उसी क्षण उसका मूल्य ’तय’ हो जाता है और वह बाज़ार की एक वस्तु हो जाती है । और आश्चर्य नहीं कि बहुत से साहित्यकार प्रतिष्ठा, सम्मान और ’पहचान’ स्थापित करने के प्रयास में अपनी रचनाधर्मिता के अमूल्य होने को भूल बैठते हैं । कला या साहित्य की महानता इसी में है कि आपने उसके माध्यम से जिसे अभिव्यक्त किया है उसे दर्शक / पाठक / श्रोता ने कितनी गहराई से अनुभव, -न कि उसका उपभोग किया है । यह ’उपभोग’ की दृष्टि वास्तव में रचनाकार और उसकी रचना को विनष्ट कर देती है ।
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