मशक-दशकम्
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१. मच्छर मलेरिया, यलो-फ़ीवर, और डेंगी जैसी घातक बीमारियाँ फैलाते हैं जिनसे हर साल लाखों-करोड़ों मनुष्य मरते हैं ।
२.मादा-मच्छर अपने अंडों और वंश के लिए मनुष्य के खून में पाये जानेवाले प्रोटीन पर निर्भर होते हैं । नर-मच्छरों को इस अतिरिक्त प्रोटीन की ज़रूरत नहीं होती और वे फूलों के रस से पोषण पाते हैं ।
३.केवल कुछ प्रकार के मच्छर ही मनुष्य के खून पर पलते-बढ़ते हैं, शेष मच्छर रेंगनेवाले जीवों, उभयचर जीवों या पक्षियों के खून पर पलते-बढ़ते हैं ।
४.मच्छर १.५ मील प्रति घंटे की गति से उड़ सकते हैं । मधु-मक्खियों और तितलियों की तुलना में बहुत धीमे ।
५.उनके पंख अत्यंत तीव्र गति से कंपन करते हैं जिसे हम उनकी भनभनाहट के रूप में सुनते हैं ।
६.जोड़ा बनानेवाले मच्छर समान-गति से पंख हिलाते हुए तो अपने लिए उपयुक्त साथी की पहचान कर लेते हैं ।
७.समुद्र-तटीयक्षेत्रों में पनपनेवाले मच्छर उपयुक्त वास-स्थल की तलाश में अपने स्थान से १०० मील दूर तक भी चले जाया करते हैं ।
८.मादा-मच्छर कुछ इंच गहरे ठहरे हुए जमा पानी में भी अपने अंडे देती हैं जहाँ उनके लार्वा तेजी से पनपते हुए देखे जा सकते हैं, इसलिए अपने निवास या कार्य-स्थल के आसपास, बगीचे में या छत, आँगन में कहीं पानी जमा न होने दें ।
९.एक वयस्क मच्छर की औसत उम्र ५-६ माह तक भी हो सकती है ।
१०.मच्छरों के पास यह विशेष-क्षमता होती है कि वे वातावरण में उपस्थित कॉर्बन-डाई-ऑक्साइड को तुरंत जान लेते हैं जिसकी सहायता से वे आसानी से उनका भोजन तलाश लेते हैं ।
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चलते-चलते :
मच्छर को मच्छर मत समझो बड़ी बीमारी है,
उसमें भी अचरज बस यह, वह केवल नारी है !
(अर्थात् यह कि केवल मादा मच्छर ही ! स्पष्टीकरण इसलिए ताकि किसी को गलतफ़हमी न हो !)
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१. मच्छर मलेरिया, यलो-फ़ीवर, और डेंगी जैसी घातक बीमारियाँ फैलाते हैं जिनसे हर साल लाखों-करोड़ों मनुष्य मरते हैं ।
२.मादा-मच्छर अपने अंडों और वंश के लिए मनुष्य के खून में पाये जानेवाले प्रोटीन पर निर्भर होते हैं । नर-मच्छरों को इस अतिरिक्त प्रोटीन की ज़रूरत नहीं होती और वे फूलों के रस से पोषण पाते हैं ।
३.केवल कुछ प्रकार के मच्छर ही मनुष्य के खून पर पलते-बढ़ते हैं, शेष मच्छर रेंगनेवाले जीवों, उभयचर जीवों या पक्षियों के खून पर पलते-बढ़ते हैं ।
४.मच्छर १.५ मील प्रति घंटे की गति से उड़ सकते हैं । मधु-मक्खियों और तितलियों की तुलना में बहुत धीमे ।
५.उनके पंख अत्यंत तीव्र गति से कंपन करते हैं जिसे हम उनकी भनभनाहट के रूप में सुनते हैं ।
६.जोड़ा बनानेवाले मच्छर समान-गति से पंख हिलाते हुए तो अपने लिए उपयुक्त साथी की पहचान कर लेते हैं ।
७.समुद्र-तटीयक्षेत्रों में पनपनेवाले मच्छर उपयुक्त वास-स्थल की तलाश में अपने स्थान से १०० मील दूर तक भी चले जाया करते हैं ।
८.मादा-मच्छर कुछ इंच गहरे ठहरे हुए जमा पानी में भी अपने अंडे देती हैं जहाँ उनके लार्वा तेजी से पनपते हुए देखे जा सकते हैं, इसलिए अपने निवास या कार्य-स्थल के आसपास, बगीचे में या छत, आँगन में कहीं पानी जमा न होने दें ।
९.एक वयस्क मच्छर की औसत उम्र ५-६ माह तक भी हो सकती है ।
१०.मच्छरों के पास यह विशेष-क्षमता होती है कि वे वातावरण में उपस्थित कॉर्बन-डाई-ऑक्साइड को तुरंत जान लेते हैं जिसकी सहायता से वे आसानी से उनका भोजन तलाश लेते हैं ।
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चलते-चलते :
मच्छर को मच्छर मत समझो बड़ी बीमारी है,
उसमें भी अचरज बस यह, वह केवल नारी है !
(अर्थात् यह कि केवल मादा मच्छर ही ! स्पष्टीकरण इसलिए ताकि किसी को गलतफ़हमी न हो !)
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