एक कविता अधूरी सी अंतहीन ...
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नीड़ का निर्माण कर लूँ,
ऐसी न कल्पना थी कभी ,
क्योंकि मैं पंछी गगन का,
उड़ते-उड़ते थक गया तो,
लौटकर आ जाता हूँ फिर,
जब ये धरती है मेरा घर,
क्यों बनाऊँ फिर मैं नीड़?
मेरा जीवन क्यों हो सीमित,
छोटे से एक नीड़ तक,
यह असीम आकाश मेरा,
और यह धरती असीम,
छोड़कर जाना नहीं है,
मुझको अपना कोई चिन्ह,
जानता हूँ लौटना होगा पुनः,
रात की निद्रा तो बस विश्राम है,
फिर नया दिन नई मंज़िल,
फिर से नया विहान है !
जिनको बनाना हो बनायें,
अपना-अपना अलग नीड़,
करते रहें संघर्ष, सृजन,
और बढ़ाते रहें भीड़,
मेरा जीवन क्यों हो सीमित,
छोटे से एक नीड़ तक,
यह असीम आकाश मेरा,
और यह धरती असीम,
क्योंकि मैं पंछी गगन का,
उड़ते-उड़ते थक गया तो,
लौटकर आ जाता हूँ फिर,
जब ये धरती है मेरा घर,
क्यों बनाऊँ फिर मैं नीड़?
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नीड़ का निर्माण कर लूँ,
ऐसी न कल्पना थी कभी ,
क्योंकि मैं पंछी गगन का,
उड़ते-उड़ते थक गया तो,
लौटकर आ जाता हूँ फिर,
जब ये धरती है मेरा घर,
क्यों बनाऊँ फिर मैं नीड़?
मेरा जीवन क्यों हो सीमित,
छोटे से एक नीड़ तक,
यह असीम आकाश मेरा,
और यह धरती असीम,
छोड़कर जाना नहीं है,
मुझको अपना कोई चिन्ह,
जानता हूँ लौटना होगा पुनः,
रात की निद्रा तो बस विश्राम है,
फिर नया दिन नई मंज़िल,
फिर से नया विहान है !
जिनको बनाना हो बनायें,
अपना-अपना अलग नीड़,
करते रहें संघर्ष, सृजन,
और बढ़ाते रहें भीड़,
मेरा जीवन क्यों हो सीमित,
छोटे से एक नीड़ तक,
यह असीम आकाश मेरा,
और यह धरती असीम,
क्योंकि मैं पंछी गगन का,
उड़ते-उड़ते थक गया तो,
लौटकर आ जाता हूँ फिर,
जब ये धरती है मेरा घर,
क्यों बनाऊँ फिर मैं नीड़?
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