July 28, 2023

Question 32 / प्रश्न 32

गुरु कौन?

Guru!! Who is Guru?? 

'Notes' Continued... 

"आप किस गुरु को मानते हैं?"

आज जब मैं उस पत्थर फेंकनेवाले से मिला तब मन में यही प्रश्न कुलबुला रहा था। और बिना किसी लाग-लपेट, यही प्रश्न मैंने उसके सामने रख दिया। उसने शान्तिपूर्वक मेरे प्रश्न को सुना, थोड़ी देर बाद मुस्कुराते हुए बोला :

"आपको अगर ऐतराज न हो तो पहले कुछ और कहना चाहूँगा।"

"जी!"

"मन में किसी भी प्रकार की कोई भी जिज्ञासा होना तो स्वाभाविक ही है, लेकिन जिज्ञासा के समाधान के लिए यह भी इतना ही आवश्यक है कि प्रश्न को भी स्पष्ट, और सही तरीके से रखा जाए।

उदाहरण के लिए, आपने :

"आप किस गुरु को मानते हैं?" -यह प्रश्न किया।

आपके प्रश्न से यह झलकता है कि 'गुरु' शब्द का प्रयोग आप किसी विख्यात, जाने-माने विद्वान, ज्ञानी, योगी या पण्डित के अर्थ में मान्य किसी व्यक्ति विशेष के लिए कर रहे हैं। मैं इस प्रश्न को इस रूप में रखना चाहूँगा :

"आप गुरु किसे मानते हैं?"

मैं थोड़ी देर तक चुपचाप उसके अगले वाक्य को सुनने के लिए प्रतीक्षा करता रहा। वह बोला :

"गुरु का अर्थ मार्गदर्शक या शिक्षक हो सकता है, और इसका दूसरा एक और अर्थ, 'बड़ा' या 'महान' भी होता है, जो किसी दृष्टि से हमसे बड़ा हो, कभी कभी 'गुरुजन' शब्द से भी उसका उल्लेख किया जाता है।"

दोनों ही दृष्टियों से, यह आवश्यक नहीं है कि किसी भी व्यक्ति-विशेष को ही एकमात्र गुरु मान लिया जाए।

और फिर ऐसे किसी भी मनुष्य को, जिसमें लेशमात्र का भी अहंकार शेष हो, उसे भी गुरु नहीं कहा जा सकता। न, कोई अपने आपके गुरु होने का दावा ही कर सकता है। क्या इसमें कोई सन्देह है?"

"अन्यथा न समझें, यदि मुझे पात्र समझते हैं, तो निवेदन करना चाहूँगा कि आप मुझे अपना शिष्य ही समझें, मुझ पर यह आपका आशीर्वाद, कृपा और मेरा परम सौभाग्य ही होगा।"

मैंने उससे विनम्रतापूर्वक प्रार्थना की।

वह अविचलित भाव से बैठा रहा। क्षण भर बाद बोला : "जब अपने आपकी परीक्षा करता हूँ तो लगता है अभी तक तो मैं स्वयं ही अपने भीतर विद्यमान आसक्ति, मोह, और उससे पैदा होनेवाले काम, क्रोध, भय, ईर्ष्या आदि से नहीं छूट सका हूँ, तो किसी दूसरे को भला क्या शिक्षा दे सकता हूँ!"

उसने उसी अविचलित सरलता से कहा।

"तो मैं आपसे कोई आशा न रखूँ?"

"जैसा आप ठीक समझें।"

चूँकि मैं उससे कुछ न कुछ सीखना अवश्य चाहता था, इसलिए इस विषय पर वहीं विराम लगा दिया। वैसे मन में एक विचार यह भी था कि उसे गुरु की तरह स्वीकार करने के बाद मैं स्वयं को भी गौरवान्वित कर सकता था। अपने ही मन की इस कुटिलता पर मुझे बरबस हँसी आ गई, तो वह भी मुस्कुरा पड़ा।

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