July 27, 2023

जादू की छड़ी!

The Magic Scale! 

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यहाँ तक तो सब ठीक ही था। उसके 'नोट्स' पढ़ते पढ़ते मेरा ध्यान इस सच्चाई की ओर गया, कि वह जिस ओर अग्रसर था, वह उस संसार से तालमेल करने की उसकी कोशिश थी, जिसका अस्तित्व उसके ही मन की कल्पना था। वैसे इस तथ्य पर उसका ध्यान नहीं जा सका था कि मन नामक तत्व ही असंख्य रूपों और आकृतियों में उस तरह से अभिव्यक्त होता है, जैसे आकाश असंख्य और भिन्न भिन्न जलाशयों में यद्यपि पृथक् और अलग अलग प्रतीत होता है, फिर भी सबकी एकमात्र आधारभूत और अखण्डित वास्तविकता होता है। उसे एक अथवा अनेक नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उसके परिप्रेक्ष्य में 'दूसरा' भी कहाँ हो सकता है? इसी प्रकार प्रत्येक जैव-प्रणाली (organism) में यह मन पृथक् पृथक् प्रतीत होता है, वस्तुतः एकमेवोऽद्वितीय होता है। आकाश और असंख्य जलाशयों में प्रतिबिम्बित उसकी भिन्न भिन्न छवियाँ उस आकाश को छूती तक नहीं, और ऐसे प्रत्येक जलाशय में जो आकाश दिखाई देता है वह जल की उपस्थिति से ही होता है। जल के सूखते ही न तो छवि और न वहाँ प्रतीत होनेवाला कोई आकाश दिखाई दे सकता है। किसी भी आधारभूत मन से संबद्ध जैव-प्रणाली में वैसे ही किसी सापेक्ष संसार के होने की मान्यता जागृत होती है, मन के उस अंश में 'स्व' के रूप में मन के उस संसार से जुड़े किसी अस्तित्व का आभास भी, -अर्थात् उस आकाश का प्रतिबिम्ब भी उत्पन्न हो उठता है। यद्यपि संसार क्षण क्षण ही बदलते हुए और सतत ही नए नए रूप में जाना जाता है, 'स्व' का आभास समय से अछूता रहता है और समय  भी मान्यता है इस तथ्य पर किसी का ध्यान नहीं जा पाता है। संसार समय के और समय संसार के सन्दर्भ में तो परस्पर और सापेक्षतः परिवर्तनशील हैं, किन्तु 'स्व' का यह आभास उन दोनों ही की पृष्ठभूमि की तरह साथ रहकर भी अदृश्य, अपरिवर्तनशील वास्तविकता है। 'स्व' का यह आभास भी पुनः संसार के ही साथ साथ प्रकट और विलुप्त होता रहता है और संसार की प्रतीति और 'स्व' के आभास में से किसी एक के न होने की स्थिति में दूसरा भी अस्तित्वमान नहीं हो सकता। इस प्रकार एक साथ, अपरिहार्यतः सह-अस्तित्वमान होना उनके वस्तुतः एक ही सत्य होने की ओर संकेत करता है। उनके उस समान और अन्तर्निहित, अपरिवर्तनशील सत्य को कोई 'स्व' कभी जान ही कैसे सकता है?

इतना लिख लेने के बाद अब लिखने या कहने के लिए और क्या है?

किन्तु फिर भी जब तक उसके 'नोट्स' उपलब्ध हैं, कुछ न कुछ लिखने का बहाना तो होगा ही! 

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