आम के आम, गुठली के दाम!
कविता / १४-०७-२०२३
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आम आदमी तो आम / आप हैं,
आम का मौसम आते ही टिकोरे,
झुकने, झूलने और झूमने लगते हैं,
उत्साह से भरे, बच्चे गिराते हैं उन्हें
पेड़ पर चढ़ या मारकर पत्थर,
बड़े तो भून या उबालकर उसको,
बना लेते हैं "पना", या फिर उसका,
चटनी, अचार, मुरब्बा या अमचुर,
आम आदमी ही तो आम होता है!
ख़ास तो वह है, जो कि आम नहीं!
फिर भी आम को है गलतफहमी,
कि वो ही तो बस खास है कोई,
उसके जैसा न दूर पास कोई!
आप ही अब तय कर लें यह,
आप आम हैं या कि ख़ास हैं,
आपका क्या भरोसा, विश्वास है!
सच ही है कि आम है जब तक,
कोई उम्मीद है, कोई आस है!
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