सड़क पर!
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यहाँ से पहले उज्जैन में नवंबर 2019 से 2023 के जून माह तक रहा। इससे भी पहले क़रीब सवा तीन साल तक जहाँ रहा, वहाँ किसी विद्यालय में शिक्षक के पद पर कार्य करने के लिए एक प्रस्ताव मिला था। जिसने प्रस्ताव दिया था विद्यालय उसका ही था, हालाँकि कहने के लिए एक समिति भी थी जिसमें बहुत से अन्य लोग भी थे, जो सभी मिलकर विद्यालय की व्यवस्था की देखरेख करते थे।
उत्सुकतावश मैंने कहा कि मुझे विद्यालय में पढ़ाने का पहले से कोई अनुभव नहीं है। उन्होंने कहा : कुछ दिन पढ़कर देखिए। अगर आपको ठीक लगे तो ज्वॉइन कर लीजिए।
मैंने कहा : मैं पहले यह देखना चाहूँगा कि अन्य शिक्षक क्या और कैसे पढ़ाते हैं।
पहले दिन मैं उस कक्षा में गया जहाँ शिक्षक अंग्रेजी पढ़ा रहे थे। वह भी हिन्दी माध्यम में। बी ए टी बैट, बैट याने बल्ला, सी ए टी कैट, कैट याने बिल्ली।
फिर मैं दूसरे दिन भी उसी कक्षा में गया जहाँ बच्चों को अंग्रेजी भाषा में गिनती, जोड़ बाकी और टेबल (पहाड़े) की शिक्षा दी जा रही थी।
सभी शिक्षाएँ बच्चों में नैसर्गिक और बालसुलभ उत्सुकता और जिज्ञासा को जागृत करना तो दूर, बल्कि केवल कुंठित कर रही थीं। दूसरे दिन उस व्यक्ति ने मुझसे पूछा कि वहाँ ज्वॉइन करने के बारे में मेरा क्या विचार है?
मैंने उनसे कहा कि मैं नहीं पढ़ा सकूँगा। वे इसका कारण जानने पर अड़े रहे। अंततः मैंने उससे कहा : मुझे लगता है कि इस पूरी शिक्षा प्रणाली में मौलिक बदलाव किया जाना चाहिए।
"किस प्रकार का बदलाव?"
वे उद्विग्न होकर कुछ अधीरता से बोले।
"देखिए किसी भी भाषा की शिक्षा उसी भाषा के माध्यम से दी जाना चाहिए। जैसे हिन्दी की शिक्षा हिन्दी भाषा के माध्यम से, अंग्रेजी भाषा की शिक्षा अंग्रेजी भाषा के माध्यम से और इसी तरह अन्य सभी भाषाओं की शिक्षा भी उस उस भाषा के ही माध्यम से। जब आप कोई भाषा किसी दूसरी भाषा के माध्यम से देते हैं तो बच्चे के मन में "ऐसा क्यों है?" इस प्रश्न को उठने से पहले ही दबा दिया जाता है और यह भी इतना या और भी विचित्र ही है, कि न तो शिक्षक और न ही शिक्षा प्रणाली थोपने वालों को ही इसकी कल्पना तक होती है कि इस प्रकार से बच्चे के मन में अनावश्यक तनाव और असमंजस भी पैदा हो जाता है, जिस पर न तो उसका और न किसी का और का ध्यान होता है। उसका मन बँट जाता है और वह केवल बाध्यता और दबाव में शिक्षा को दोहराता रहता है। यदि किसी भाषा को सीधे उसी भाषा के माध्यम से सिखाया जाए तो बच्चे का मन अनायास ही इस सच्चाई को स्वीकार कर लेता है कि भिन्न भिन्न भाषाओं की संरचना अलग अलग और एक दूसरे से स्वतन्त्र होती है, जिससे वह दो या दो से अधिक भाषाएँ भी आसानी से सीख सकता है।
यह तो हुई भाषा शिक्षा की बात।
अब गणित की शिक्षा के विषय में :
गणित (जोड़ बाकी) और संख्या की शिक्षा दिए जाने से पहले बच्चे को यह बतलाया जाना चाहिए कि संख्याएँ और संख्याओं का एक दूसरे से संयोजन केवल मान्यता ही है जिसकी सत्यता सुनिश्चित नहीं है इसके लिए यह एक उदाहरण देना ही पर्याप्त होगा :
मान लीजिए एक टोकरी में तीन आम और दूसरी टोकरी में चार आम हैं। यदि सभी आमों को एक ही टोकरी में रख दिया जाए, तो कुल सात आम होंगे। इस प्रकार एक दृष्टि से जिनकी संख्या सात है, वे ही फल की दृष्टि से "एक" ही हैं।
इसी प्रकार से मान लीजिए एक टोकरी में तीन आम और दूसरी टोकरी में चार सेब हैं, और यदि उन्हें एक ही टोकरी में रख दिया जाए तो संख्या की दृष्टि से तो वे "सात" होंगे, "फल" की दृष्टि से "दो" ही होंगे।
आम और सेब के उपरोक्त उदाहरण से :
एक = दो = तीन = सात
यह रोचक निष्कर्ष प्राप्त किया जा सकता है!
इस प्रकार संख्या की अवधारणा भी उतनी ही भ्रामक हो सकती है, जितनी कि किसी भाषा में किसी शब्द का कोई विशेष अर्थ होने की अवधारणा।"
वे भौंचक होकर मेरा मुँह देखने लगे।
फिर ठहाका लगाकर बोले : "हाँ आप ठीक कहते हैं, इसलिए आपका और हमारे विद्यालय का, यही सभी के हित इसी में है कि आप हमारे विद्यालय में न ही पढ़ाएँ! अच्छा हुआ जो पहले से ही आपने यह स्पष्ट कर दिया!
धन्यवाद!"
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