क्या हिन्दुत्व एक षड्यंत्र है?
यह पोस्ट इसलिए लिख रहा हूँ कि इसके माध्यम से स्वर्गीय श्री बलराज मधोक के
भारतीयता के विचार
को पुनः एक बार स्मरण कर लिया जाए।
यह तो स्पष्ट है कि जिस समय श्री बलराज मधोक ने उक्त विचार / दर्शन की स्थापना और प्रतिपादन किया था, उस समय तत्कालीन जनसंघ के कट्टर हिन्दूवादी नेता यह समझने में पूरी तरह और नितान्त विफल रहे कि
आर. एस. एस. की स्थापना करनेवाले इस विषय में कितने दिग्भ्रमित थे।
सबसे बड़ी बात यह कि "हिन्दू" धर्म नहीं, संस्कृति या सभ्यता है जिसका प्राण है सनातन, अर्थात् धर्म, जो कि सनातन है। सनातन धर्म कहना पुनरुक्ति मात्र है। जैसे कोई कहे - "मीठी शक्कर"। शक्कर का अर्थ है मीठा और मीठा का अर्थ है शक्कर। इसी प्रकार सनातन का अर्थ है अजर अमर धर्म और धर्म का अर्थ है अजर अमर अविनाशी अर्थात् सनातन और शाश्वत। आर. एस. एस. की स्थापना ही भारत और भारतीयता को, भारतीय जाति, सभ्यता और संस्कृति को "हिन्दू" नाम दिए जाने से हुई।
इस प्रकार हिन्दू-विरोधी सभी समुदाय संगठित हो गए और इस प्रकार से
India That Is Bharat
अर्थात् भारत और भारतीयता के विचार को गौण बनाकर अप्रासंगिक और उपेक्षित दिया गया।
दुर्भाग्य से या इरादतन श्री बलराज मधोक को पार्टी के महत्वपूर्ण स्थान से धीरे धीरे हाशिए पर धकेल दिया गया और मार्जिनलाइज़ कर अप्रासंगिक बना दिया गया। आज भी भारत विश्व की दो महाशक्तियों अर्थात् भारत (और भारतीयतावादी) तथा भारत के विरोधियों के बीच का रणक्षेत्र बना हुआ है। जनसंघ, आर. एस. एस. और अन्य सभी हिन्दूवादी संगठन आज तक इस अन्तर्द्वन्द्व / दुविधा से उबर नहीं पाए हैं। और कभी उबर ही सकेंगे ऐसी कोई उम्मीद भी नहीं है।
भारत को "हिन्दू राष्ट्र" घोषित न कर पाने में मूलतः यही असमंजस मूल कारण है।
हो सकता है कि हिन्दूवादी विचारधारा के प्रबल और कट्टर समर्थक भविष्य में संविधान संशोधन लाकर ऐसा कर पाने में सफल भी हो जाएँ, लेकिन इसकी कौन सी और कितनी बड़ी कीमत "भारतीयों" और सनातन (या धर्म) को माननेवालों की चुकानी होगी इसकी कल्पना करना तक अत्यन्त भयावह है।
धर्म तो सनातन ही है, और सनातन ही धर्म है।
हिन्दू (वैदिक), जैन, बौद्ध, सिख सभी सनातन के ही विभिन्न रूप हैं यहाँ तक कि पारसी भी। केवल मुस्लिम, ईसाई और यहूदी परंपराएँ ही "सनातन" अर्थात् "वैदिक धर्म" से प्रतिकूल विचारधारा पर आधारित हैं और उनके माननेवालों का ही सनातन अर्थात् वैदिक धर्म से मौलिक मतभेद है। भारतीय और गैर-भारतीय का विभाजन इस दृष्टि से स्पष्ट ही है, और इसलिए भारत राष्ट्र को "हिन्दू राष्ट्र" बनाने का विचार ही मूलतः विध्वंसकारी और अत्यन्त विनाशकारी भी है।
उक्त पोस्ट लिखने का एकमात्र कारण यही है कि इस माध्यम से प्रबुद्धों और राष्ट्रप्रेमी नागरिकों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया जाए।
कृपया "लेबल" में 'बलराज मधोक' पर क्लिक कर पहले लिखे मेरे पोस्ट्स का अवलोकन करें।
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