कविता / 03 जुलाई 2024
इस पावस में!!
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बस, कि कुछ लिखते रहो
ब्लॉग पर दिखते रहो!
सदानीरा सरिता जैसे,
सदा तुम बहते रहो!
हाँ ये सरिता भी कभी,
सागर में मिल ही जाना है,
नाम गुम ही जाना है,
चेहरा भी बदल जाना है,
भाप बनकर गगन में,
बादल बन जाना है,
लौटकर पावस बून्दों को,
धरती पर ही आना है!
ध्वंस का उल्लास अपने,
ब्लॉग में कहते रहो,
सदानीरा सरिता जैसे,
सदा तुम बहते रहो!
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