January 04, 2023

विचार और मैं ...

यह कुछ कठिन है किन्तु दुरूह नहीं है! 

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मैं कभी कुछ नहीं सोचता, क्योंकि मैं तो सोच सकता ही नहीं! विचार अनायास आते और जाते हैं, पर मैं विचार नहीं करता। क्योंकि विचार एक घटना है, क्रिया, कृत्य, कर्म या कार्य नहीं!

व्याकरण के सन्दर्भ में उपरोक्त वक्तव्य में "मैं" पद को उत्तम पुरुष एकवचन या अन्य पुरुष एकवचन, किसी भी आधार पर समझा जा सकता है।

"मैं विचारकर्ता नहीं", -यह जानना कितना अद्भुत् है!

विचारों के क्रम से ही अपने किसी विचारकर्ता के रूप में होने का एक और नया  इस प्रकार का आभास / विचार उत्पन्न होता है। 

इसी प्रकार मैं कभी कुछ नहीं चाहता, क्योंकि मैं तो चाह सकता ही नहीं! क्योंकि चाह / इच्छा एक घटना है, क्रिया, कृत्य, कर्म या कार्य नहीं!

पहले की ही तरह, व्याकरण के सन्दर्भ में उपरोक्त वक्तव्य  में "मैं" पद को उत्तम पुरुष एकवचन या अन्य पुरुष एकवचन,  किसी भी आधार पर समझा जा सकता है।

"मैं इच्छा नहीं करता", -यह जानना कितना अद्भुत् है! 

यदि मैं विचार नहीं करता, यदि मैं इच्छा नहीं करता, न ही कर सकता, तो यह जो विचारकर्ता और / या इच्छा करनेवाला है, वह कौन / क्या है?

क्या शरीर विचार या इच्छा करता / कर सकता है? 

क्या हृदय / मस्तिष्क विचार या इच्छा करता / कर सकता है?

क्या चेतना / चेतनता जो जाग्रत से स्वप्न, स्वप्न से स्वप्न-रहित निद्रा और स्वप्न-रहित निद्रा से पुनः स्वप्न और स्वप्न से पुनः जाग्रत दशा में अनायास आती जाती है, विचार या इच्छा कर सकती है?

यहाँ कोई निष्कर्ष नहीं दिया जा सकता, क्योंकि निष्कर्ष प्राप्त करना बुद्धि का कार्य है, और प्रश्न यह है कि क्या बुद्धि स्वतंत्र रूप से, -चेतना / चेतनता पर आश्रित हुए बिना, अर्थात् चेतना के अभाव में कार्य कर सकती है?

यहाँ केवल इतना ही कहा जा सकता है।

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