कविता / 10-01-2023
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खुद से खुद तक की जो है, कितनी है दूरी,
खुद से खुद तक का जो है, फासला कितना!
खुद से खुदा तक की जो है, कितनी है दूरी,
खुद से खुदा तक का जो है, फासला कितना!
क्या कभी तय कर पाओगे, जो है यह दूरी,
क्या कभी मिट सकेगा, जो है यह फासला!
क्या खुद से परे, कहीं अलग और कुछ है भी!
क्या खुदा से परे, कहीं अलग और है कुछ भी!
जहाँ भी जाओगे, खुद को ही तो तुम पाओगे,
जहाँ खुदा न हो, क्या जगह ऐसी भी कभी पाओगे!
तो कौन सी वो दूरी है, खुद से खुद तक की,
तो कौन सा फासला है, खुदा से खुद तक का !
कौन सा फासला है, खुद से खुदा तक का जिसे,
पाटने का, मिटाने का, तुम करते हो खयाल!
वो क्या है कि जो दूर करता है खुद को खुद से,
वो क्या है कि जो, फासला, खुद से खुदा तक का,
तो कर लो फैसला पहले तसल्ली से यही,
उसको ही तय कर लो, मिटा दो उसको ही!
ये मुश्किल तो नहीं है, न बहुत आसान मगर,
दिल में हो तुम्हारे, ज़ुनून और जोश अगर!
तो सवाल ये कभी न कभी तो हल होना ही है,
अगर पूछोगे ही नहीं, तो फासला न मिटना है!
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