क वि ता / 31-01-2023
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यह जो मेरा मन है,
उससे मेरी अनबन है!
यह जो मेरा तन है,
वह तो मेरा दुश्मन है!
मैं और जीवन क्या है,
दोनों को पता नहीं है,
साँठ-गाँठ दोनों की ऐसी,
व्याकुल सबका जीवन है!
यह दोनों जो हैं सबमें,
इक दूजे के बन्धन हैं,
यह जो है उन दोनों में,
यह मैं ही तो जीवन है!
तन, है मिट्टी पानी आकाश,
मन है अगन, वायु है साँस,
इसमें ही सबको रहना है,
इस घर में सबका है निवास,
घर तो आख़िर घर ही है,
दुनिया लेकिन बाहर ही है,
सब कुछ सबमें, सब सर्वत्र,
लेकिन जीवन सर्वस्व ही है!
यह जो अपना ही जीवन है,
यह जो सबका ही जीवन है,
तन मन सबके अलग अलग हैं,
पर एक सभी का जीवन है!
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