January 03, 2023

यथास्थितिवाद के पक्ष में!

कविता / 03-01-2022

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क्या ही अच्छा हो कि कुछ न अब लिखा जाए,

क्या ही अच्छा हो कि कुछ न अब पढ़ा जाए!

क्या ही अच्छा हो कि कुछ न अब कहा जाए, 

रहते हुए चुपचाप, बस सब कुछ अब सहा जाए!

कौन सा है रास्ता भीतर या बाहर की तरफ,

जिस तरफ और भी आगे को अब बढ़ा जाए,

कौन सा पर्वत-शिखर है, जिस पर अब चढ़ा जाए, 

कौन सा मुहावरा नया कोई अब गढ़ा जाए, 

कौन सा आरोप और, किस पर अब मढ़ा जाए!

क्या ही अच्छा हो कि कुछ न अब लिखा जाए,

क्या ही अच्छा हो कि कुछ न अब पढ़ा जाए!

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