March 29, 2021

सच, झूठ, और वक्त

अगर वक्त का इतिहास नहीं है, 

तो वक्त का एहसास नहीं है, 

पर अगर वक्त का इतिहास है, 

ज़रूर फिर उसका, एहसास है। 

ये,  एहसास का होना, न-होना, 

तिलिस्म है, ख़याल भर है एक, 

ख़याल भी वक्त जैसा ही, 

फ़रेब धोखा है, -बेमिसाल है।

बस अगर बेख़याल हो जाएँ,

न एहसास है, न कोई वक्त ही है,

जो कि रुका हो, या कि फिर चलता हो,

कहाँ वहाँ कोई भी फिर सवाल है?

वो पूछते हैं मरने पे क्या होता होगा,

वही तो होगा, जैसा कि फिलहाल है!

हाँ, वो पहचान, वो याद भी न रहेगी,

लगती है जो सच, पर झूठ, -ख़याल है !

एहसास वक्त है, वक्त ही एहसास भी,

जैसा जीते-जी है, मौत के बाद भी! 

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