March 02, 2021

ख़ामोशी (कविता)

सरकार की ख़ामोशी भी कुछ कह रही है, 

हर तरफ़ उलटी बयार ही बह रही है! 

हरेक चेहरे पर मानों चढ़ी हुई है नका़ब,

हरेक साँस ही कोई घुटन सी सह रही है!

हरेक पल ही लगा रहता है अंदेशा नया,

हरेक फ़िक्र ही बेवजह, और वजह रही है।

हर तरफ़ अब तो दूरियाँ ही दूरियाँ हैं, 

किसी के दिल में अब कोई जगह नहीं है।

जिस तरह से हो सके, गुज़ार लो अब ज़िन्दगी,

ज़िन्दगी गुज़ारने को, अब कोई तरह नहीं है!

'सतह से उठता आदमी' देखा तो ये ख़याल आया,

उसके पाँवों तले, क्या कोई सतह नहीं है? 

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