नहीं है नजर, आ रहा!
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अपनी हस्ती की वजह नहीं नजर आ रही,
अपनी हस्ती का सबब नहीं नजर आ रहा!
अपने वजूद की पहचान नहीं हो पा रही,
अपनी हस्ती का मतलब नहीं नजर आ रहा!
अपनी हस्ती कहाँ से, कैसे, और कब बनकर,
अपने आलम से, कैसे आलम में होती है महसूस,
कहाँ है अपने से जुदा, कोई आलम नजर नहीं आ रहा!
वक्त का आगाज कहाँ से, कैसे, और कब हुआ होगा,
वक्त पर पर्दा कब गिरेगा, ये भी नजर नहीं आ रहा!
क्या मैं था उस वक्त, जब हुआ था वक्त का आगाज,
क्या मैं रहूँगा जब हो जाएगा वक्त, यहाँ से दफ़ा?
वक्त के होने का और न होने का मतलब क्या है,
ये तिलिस्म आख़िर क्या है, समझ में नहीं आ रहा!
राज ये वक्त का जाहिर है, या कि है पोशीदा कहीं,
काश समझा दे कोई मुझे, मुझको तो नहीं है आ रहा!
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