March 29, 2021

एक चिथड़ा सुख

निर्मल वर्मा का लिखा यह उपन्यास मैंने सबसे पहले वर्ष 1985 के आसपास पढ़ा होगा। 

"तुम यह सब छोड़ क्यों नहीं देती?"

"क्या छोड़ना है?"

बिट्टी जवाब देती है। 

"थिएटर"

उसका भाई सोचता है पर कह नहीं पाता। 

बिट्टी सोचती है:

"क्या कहीं ऐसी कोई और दूसरी दुनिया है, इस दुनिया को छोड़कर जहाँ जाया जा सकता है?" 

बिट्टी के उस छोटे भाई को हर दो तीन में अचानक बुखार आता रहता है। बिट्टी न जाने किस उम्मीद में "डैरी" (डायरेक्टर) के थिएटर में अभिनय करती रहती है। 

एक और पात्र है जिसका नाम (शायद) "नितिन दा" है ।

वे "बहुत सफाई से" ब्लेड से कलाई की नस काटकर आत्महत्या कर लेते हैं। बाथटब में शान्तिपूर्वक अधलेटे से नज़र आते हैं, लगता है शायद उन्हें कोई वार्महोल मिल गया है! शायद वे उस दूसरी दुनिया में चले गए हैं। 

बहुत साधारण सी कहानी है इस उपन्यास की, जिसमें रोमांच, उत्तेजना या भावुकता का कोई स्थान नहीं है। 

केवल एक मनःस्थिति है जिसमें हर एक पात्र अपनी भूमिका जी रहा होता है। सभी एक दूसरे से अलग अपनी दुनिया में जीते हुए भी किसी एक कॉमन दुनिया को शेयर कर रहे होते हैं, फिर भी किसी से जुड़ नहीं पाते। 

क्या सबके लिए ऐसी कोई एक कॉमन दुनिया (objective reality) वास्तव में कहीं होती भी है? 

आज के आधुनिकतम, विज्ञान में अब यह प्रश्न उठाया जाने लगा है, और कुछ वैज्ञानिक कह रहे हैं :

"Objective Reality does not exist!"

किन्तु वे यह प्रश्न नहीं उठाते, या इस प्रश्न की कल्पना तक उन्हें नहीं होती, कि फिर वह क्या है जिसका अस्तित्व है? 

Subjective Reality क्या है? 

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