March 17, 2021

मायूस और ग़मगीन!

कविता / 17-03-2021

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कब तक दोगे धोखा ख़ुद को, 

कब तक दिल को बहलाओगे? 

अपने जख्मों को, घावों को, 

कब तक यूँ सहलाओगे?

एक ओर यह खालीपन, 

वक़्त की कमी, दूसरी ओर,

एक ओर तो ओढे़ खुशी, 

एक ओर यह नकली ग़मी, 

ओढी़ हुई मास्क से तुम,

कब तक सबको भरमाओगे?

हाँ उनके भरमा जाने से,

हो जाए शायद तुम्हें यक़ीन,

कि वे भी हैं बिलकुल वैसे,

जैसे हो तुम, मायूस ग़मगीन!

कब तक इस झूठे नाटक में,

क़िरदार अपना निभाओगे?

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