May 19, 2024

बाहर और परे!!

कौतूहल!

मनुष्य न तो अपने जीवन में आनेवाले लोगों और समय के बारे में कोई पूर्वानुमान लगा सकता है, और न ही उन परिस्थितियों का, जिनका सामना उसे अप्रत्याशित रूप से शायद अचानक करना पड़ सकता है। कहने के लिए उसे इस बारे में कोई उम्मीद, डर, आशा, आशंका भी हो सकती है, जिसे वह "आभास" कहता है, किन्तु यह तो समय बीतने पर ही पता चल पाता है कि वह पूर्वानुमान कहाँ तक और कितना सही सिद्ध हुआ। 

बहुत कुछ खाली समय होने के कारण पिछले दो माह से यू ट्यूब पर ज्योतिषियों द्वारा घोषित भविष्यवाणियों से संबंधित वीडियो देखता रहा हूँ। विशेष रूप से भारतीय भविष्यवक्ताओं के। शायद किसी का नाम लिया जाना उचित न हो, फिर भी स्थानीय और विश्व राजनीति एवं मौसम से संबंधित उनकी भविष्यवाणियाँ 100% तक सही सिद्ध हो रही हैं। जैसे कि मई के पहले तीन हफ्तों के बारे में। मुझे लगता है कि न सिर्फ मैं बल्कि हर कोई ही ऐसे अभूतपूर्व समय से गुजर रहा है जिसमें किसी से किसी को मदद पाने की उम्मीद तक नहीं दिखाई दे रही है। एक ऐसे ही क्रूर समय में भी अचानक उन लोगों से मिलना जिनसे मिलना और बिछुड़ना हुए तीन दशकों से भी अधिक का समय बीत चुका है, स्तब्ध, विस्मित और भावुक भी कर देता है। पुनः उनसे मिलने के बाद पुरानी यादें नये रूप में सामने आती हैं और मन फिर एक बार अतीत को उसी पुराने चश्मे से देखने लगता है जिसका नंबर और फ़ोकस बहुत बदल चुका होता है। पूरे समाज पर अतीत के प्रभाव से बदलाव के इतने अधिक चिन्ह नजर आ रहे हैं कि तीन दशकों पुराना अतीत बेमानी सा प्रतीत होता है। उन पुराने लोगों से मिलने पर, लगता है जैसे मानों विदेश में तीन दशक बिताकर लौट आए हैं। एक बात यह भी है कि इन तीन दशकों से उनसे कोई संपर्क तक नहीं हो पाया था। हर कोई ही अपनी अपनी स्थितियों और परिस्थितियों को जी रहा था और उनमें से बहुत कम इतने ही लोगों से पुनः मिलना हो पाया, जिन्हें उंगलियों पर गिना जा सकता है। शायद सभी कौतूहल और उत्सुकता के साथ मुझसे मिले। कुछ मुझे और कुछ को मैं भी भूल ही गया। कुछ लोग कोविड 19 की भेंट चढ़ गए जिनके बारे में अभी ही जान पाया। एक विचित्र मनःस्थिति है, जब वर्तमान वैसा ही अत्यन्त अनिश्चित जान पड़ता है जैसा कि पिछले तीन दशकों से था। "व्यवस्था" से बाहर और प्रायः असंबद्ध रहते हुए ही ये तीन दशक बीत गए और आज भी समय वहीं, वैसा ही स्तब्ध सा खड़ा है। न अतीत के प्रति कोई शिकायत या उद्विग्नता है, न भविष्य की चिन्ता, विचार या आभास।

और यह सब रोचक तो है ही! 

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