May 10, 2024

किनारे पर,

कल का सपना : ध्वंस का उल्लास -28
_____________________________

अक्सर मैं नींद में चलता रहा,
पानियों पर और घुप अंधेरों में,
नींद खुलते ही पाया अपने को,
जल से अनछुआ किनारे पर,
कहाँ है कर पाना, किसके बस में ?  
जानता हूँ ये कोई चमत्कार नहीं,
मैं नहीं सोचता -कभी कोई,
मेरी पूजा करे, मैं अवतार नहीं ।
--
वर्ष 2014 में एक दिन इसे लिखा था लेकिन इसमें कोई कमी खटक रही थी अतः प्रकाशित नहीं किया। आज वह कमी दूर हो गई इसलिए प्रकाशित कर रहा हूँ।

***


No comments:

Post a Comment