कल का सपना : ध्वंस का उल्लास -28
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अक्सर मैं नींद में चलता रहा,
पानियों पर और घुप अंधेरों में,
नींद खुलते ही पाया अपने को,
जल से अनछुआ किनारे पर,
कहाँ है कर पाना, किसके बस में ?
जानता हूँ ये कोई चमत्कार नहीं,
मैं नहीं सोचता -कभी कोई,
मेरी पूजा करे, मैं अवतार नहीं ।
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अक्सर मैं नींद में चलता रहा,
पानियों पर और घुप अंधेरों में,
नींद खुलते ही पाया अपने को,
जल से अनछुआ किनारे पर,
कहाँ है कर पाना, किसके बस में ?
जानता हूँ ये कोई चमत्कार नहीं,
मैं नहीं सोचता -कभी कोई,
मेरी पूजा करे, मैं अवतार नहीं ।
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वर्ष 2014 में एक दिन इसे लिखा था लेकिन इसमें कोई कमी खटक रही थी अतः प्रकाशित नहीं किया। आज वह कमी दूर हो गई इसलिए प्रकाशित कर रहा हूँ।
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