May 13, 2024

71 ध्यान का महत्व

Question / प्रश्न 72

What is Attention and What is it's Importance?

ध्यान / अवधान और इसका महत्व क्या है?

Answer / उत्तर --

इस प्रश्न 72 का उत्तर दिए जाने से पहले इससे अधिक महत्वपूर्ण इस एक और प्रश्न 71 का उत्तर दिया जाना आवश्यक है --

Question / प्रश्न 71 --

शरीर के स्वाभाविक क्रिया कलापों के दोनों रूपों - स्वैच्छिक और अनैच्छिक को हम जानते ही हैं। क्या यही प्रश्न "मन" के बारे में भी पूछा जा सकता है? कि क्या हम "मन" के कार्यकलापों के दोनों रूपों - स्वैच्छिक और अनैच्छिक को हम जानते हैं? 

शरीर के वे क्रियाकलाप जिन पर ध्यान दिया जाना कभी कदापि आवश्यक नहीं होता जैसे शरीर में रक्त परिभ्रमण और भूख प्यास लगना, आदि पर ऐच्छिक या अनैच्छिक का प्रश्न लागू ही नहीं होता। वैसे ही श्वास-प्रश्वास और मल मूत्र तथा पसीने आदि आने और उनका उत्सर्जन । दूसरी ओर, इच्छा-अनिच्छा और "मन" परस्पर किस प्रकार संबंधित हैं' भी हम नहीं जानते -- दूसरे शब्दों में -"मन" के संबंध में भी "ऐच्छिक"-"अनैच्छिक" का अर्थ क्या है, इस बारे में भी हमें सुनिश्चित रूप से कुछ भी नहीं पता है। इसे समझने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि शारीरिक क्रिया-कलाप प्राकृतिक और सहज, स्वतंत्र रूप से स्वयमेव होते हैं जबकि मानसिक क्रिया-कलापों के दो विशेष प्रकार होते हैं जिनमें से एक तो यांत्रिक होता है, जबकि दूसरे को आभासी या प्रतीति के रूप में मानसिक यंत्र का स्वामी और नियंत्रणकर्ता अर्थात्  "स्व" कहा जाता है। सरल शब्दों में - जब कोई "मेरा मन" कहता है तो "स्व"  या "स्वयं"  self को अर्थात् अपने "मन" को एक ओर तो विचार, भावनाएँ, इच्छाएँ, स्मृतियाँ आदि और दूसरी ओर उनका स्वामी भी कहता है। क्या "मन" का इस प्रकार से विभाजन किया जाना युक्तिसंगत है? इसको यदि और सूक्ष्मता से देखें तो स्पष्ट होगा कि "मन"  वस्तुतः विचार, भावना, स्मृति भी है और साथ ही विचारकर्ता के रूप में "मन" में निहित सभी विचारों, भावनाओं और स्मृतियों को जाननेवाली वह आधारभूमि भी है, जो सतत अपरिवर्तित रहते हुए भी स्वयं "स्व" पर या "स्वयं" पर आभासी परिवर्तनों को आरोपित कर लेती है।  तात्पर्य यह कि "मन" एक ओर तो समस्त निरंतर,  सतत परिवर्तित होती रहनेवाली मानसिक क्रियाकलापों का समूह होता है, तो दूसरी ओर उन सबके आश्रय के रूप में एक अपरिवर्तनशील सत्ता भी होता है। "मन" के सतत परिवर्तित होते रहनेवाले प्रकार को चेतन और अपरिवर्तनशील आश्रय / आधार को अचेतन कह सकते हैं। चेतन  वह है जो जागृति की अवस्था में कार्यशील होता है। जबकि इस अचेतन को भी पुनः दो रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है - एक वह जिसे यद्यपि स्वप्नावस्था में अनुभव किया जाता है, किन्तु जिसे स्वप्नरहित सुषुप्ति की अवस्था में अनुभव नहीं किया जाता, क्योंकि स्वप्नरहित सुषुप्ति में दूसरा "मन" विद्यमान होता है जो सुषुप्ति  में अनुभव किए जानेवाले "सुख" का उपभोग भी करता है और उसे स्मरण रख उस पर अपना स्वामित्व भी घोषित करता है। जिसे बाद में जागृति के समय अभिव्यक्त किया जाता है। इस प्रकार इच्छा और अनिच्छा अचेतन के दो रूपों में अवचेतन और सुषुप्त "मन" की स्थितियों में स्वप्न और निद्रा के अंतर्गत होनेवाली गतिविधि होती हैं।

इन सबका अनायास स्वाभाविक "भान" ही वह बोध है जिसे "स्व" से संयुक्त होने पर ध्यान या अवधान कहा जाता है। इसलिए ध्यान में कोई ध्यानकर्ता होता है, जबकि अवधान के साथ ऐसा कोई या कुछ नहीं होता जो प्रयासपूर्वक अवधान रखता हो। 

एक उदाहरण : जैसे स्वैच्छिक या अस्वैच्छिक रूप से श्वासोच्छ्वास का कार्य हुआ करता है, ठीक उसी तरह से अवधान भी अनायास अखंडित रूप से विद्यमान होता है, जबकि ध्यान आवश्यक रूप से स्वेच्छया किया जाता है और मन की इस स्वैच्छिक गतिविधि में मन ही ध्यान का कार्य और ध्यानकर्ता भी होता है।

अवधान / Awareness / Attention  वह बोध या भान है, जिसमें "मन" ध्यान और ध्यानकर्ता, विचार और विचारकर्ता की तरह से विखंडित नहीं होता। 

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