~~~~~~~ उन दिनों - 74 ~~~~~~~~
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जानना और होना
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''अब हम एक बारीक तथ्य पर ध्यान दें ।''
-वे बोले
''जानना जहाँ एक ऒर एक गतिविधि होता है, वहीं दूसरी ऒर क्या वह
एक स्थिति भी नहीं होता ?
कैसी स्थिति किसकी स्थिति ?
''आप समझ रहे है न ?''
-उन्होंने मुझे सहारा देते हुए पूछा .
मैं बहुत देर तक उनकी बात पर गौर करता रहा ।
''देखिए अगर आप यहाँ से एक कदम भी आगे बढ़ सकते हैं तो समझिए
लौटना असंभव हो जाएगा । और सच तो यह है कि कोई लौटनेवाला ही
कहीं न होगा ।''
वे बड़ी सतर्कतापूर्वक एक एक शब्द बोल रहे थे ।
यह मेरा इम्तहान था ।
देखिए जब मैं कह रहा हूँ कि जानना एक स्थितिपरक तथ्य भी है तो
मेरा आशय यह है कि उस जानने को आप होने के अर्थ में भी ग्रहण
कर सकते हैं । वह है - होना, - निपट होना, न कि कुछ होना या कुछ से
कुछ और होना या बनना ।
उन की निगाहें मुझ पर टिकीं थीं । जंरूर यह एक कठिन समय था ।
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वाह सर जी ....ऐसा तो आप ही लिख सकते है ! बिरले ही मिलते है जिनको मात्र पढने के लिए दिमाग की सारी नसे इस्तेमाल करनी पड़ती है और उनमे से आप है एक ...."जानना और होना" कितनी खूबसूरती से अर्थ स्पष्ट किया है की जानना एक स्थितिपरक तथ्य भी है ! मैं भी कुछ कुछ जान गया हूँ की आप ग्रेट हो ..
ReplyDeleteसाधुवाद स्वीकार करे !
भइ अगर आप जान गये हैं कि हम कितने ग्रेट हैं
ReplyDeleteतो यह आपकी ही ग्रेटनेस को इंगित करता है ।
मेरा निवेदन है कि मेरी उपन्यास इन दिनों की पूरी
श्रँखला को आप एक बार पढ़ें ज़रूर ! तब आप सही
निष्कर्ष दे सकेंगे ।
सादर,