May 08, 2010

(26/11) प्रसंगवश (07/05/10)


~~~~~~~~~उस रात ~~~~~~~~~~
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उस रात,


कुछ ज़िंदा मिसाइलें, अचानक आईं,


धावा बोला था मेरे शहर पर,


-उन्होंने .


कुल जमा दस में से नौ ने मचा दी थी तबाही मेरे शहर में ! 


बना दिया था शहर को श्मशान !


मेरे शहर के शहरियों में से कितने ही मारे गए,


कितने ही हो गए लहू-लुहान !


फिर कुछ बहादुरों ने जान हथेली पर रखकर,


पकड़ लिया था, 


उस एक को, ज़िंदा ही .


अब उस पर मुकदमा चलाया जा रहा है .


कुछ कहते हैं, फांसी पर टांगो,


कुछ, कहते है, अहिंसा परमो धर्म: 


और कुछ कहते हैं, 


न्याय को अपना काम करने दो.


पर पता नहीं क्यों,


कोई यह क्यों नहीं कहता कि


मिसाइलें जहां से भेजी जा रही हैं,


उन्हें सजा दो ! 
_____________________________******************************* नोट : प्रस्तुत कविता itimes में श्री संजय अवस्थी के एक ब्लॉग पर टिप्पणी के रूप में लिखी गयी थी .____________________________****************************  

4 comments:

  1. kahte hain saja do....lekin kaise....wo bhi jab america supoort kare tab

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  2. Priyaji,

    ज़ाहिर है हमारी सरकार में जो लोग हैं
    उनमें इच्छाशक्ति ही नहीं है । लेकिन
    मीडिया और जनता कहाँ इस बारे में
    जागरूक है ?
    Thanks for your precious comment.
    -v.

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  3. ऐसे वीभत्स कृत्य के लिए दुष्ट मुल्क को सजा देना ही न्याय है किन्तु यह काम जिनका है "सरकार" वो ही कुम्भकरण की नींद ले रही है ! बहरहाल ...आपकी उत्तम शैली का कायल विनय पाण्डेय साधुवाद भेज रहा है ! विनय पूर्वक स्वीकार करे !

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  4. धन्यवाद विनयजी !
    मित्रों से कुछ प्रेरणाएँ मिल जाती है
    तो ब्लॉग लिखने का उत्साह और उत्साहस बना रहता है ।
    सादर,

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