~~~~~~~~~उन दिनों-70 ~~~~~~~~~
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बहुत चक्करदार था यह प्रश्न भी ।
''जानना सचमुच एक गूढ़ तत्त्व है । हम कभी इस बारे में ध्यान ही कहाँ देते हैं ? ''
-उन्होंने कहना शुरू किया ।
एक नया सत्र । उनसे चर्चा का दौर एक सत्र ही होता था । हम कई महीनों या वर्षों का कोर्स कुछ मिनटों या घड़ियोंमें पूरा कर लेते थे । एक ओर तो एक तरह का क्रैश-कोर्स, तो वहीं साथ-साथ दूसरी ओर एक रेडिकल ट्रांस्फॉर्मेशनभी हो रहा होता था ।
''तुमने संस्कृत पढ़ा है ?''
-उन्होंने पूछा ।
मेरे पास इसका कोई ठीक उत्तर नहीं था । स्कूल में तीसरी भाषा के रूप में अवश्य पढ़ा था । कुछ सुभाषित, लट-लोट आदि लकार, रूप, क्रिया-रूप, जैसी कुछ चीज़ें जिन्हें जैसे-तैसे रट-रटाकर नैय्या पार हुई थी ।
''खैर, नहीं भी पढ़ा हो तो कोई बात नहीं, मैं दर-असल संस्कृत की सकर्मक और अकर्मक धातुओं के बारे में कहनाचाहता था । ''
मैं सोचने लगा कि इन्हें शायद संस्कृत आती होगी, लेकिन मेरा यह अनुमान बहुत सही नहीं था ।
''संस्कृत में या शायद सभी भाषाओं में दो तरह की क्रियाएँ होती हैं, जैसे हिंदी में कुछ क्रियाएँ होती हैं । जैसे - 'रामखाता है । ' इस वाक्य में ज़ाहिर है कि राम अर्थात् 'कर्त्ता' याने कि subject फल, रोटी, मिठाई, या ऐसी ही कोई चीज़(object) खा रहा है । लेकिन जब कहा जाता है कि राम हँसता है, या रोता है, तो उस क्रिया का 'कर्म' (object) नहींहोता । इस प्रकार से, खाना, पीना, मारना, देना, लेना, आदि क्रियाओं में जहाँ क्रिया का एक 'कर्म' होता है, जिस परकर्त्ता' के द्वारा क्रिया घटित की जाती है, वहीं कुछ क्रियाएँ ऐसी भी होती हैं, जिनमें 'कर्त्ता' क्रिया तो पूर्ण करता है, किन्तु क्रिया का कोई ऐसा प्रत्यक्ष 'कर्म' नहीं देखा जाता जिसके संबंध में यह क्रिया घटित हो रही होती है । जैसेरोना, हँसना, दौड़ना, तैरना, बोलना, सोना, आदि । इन्हें हम अकर्मक कह सकते हैं ।
इस प्रकार कुछ क्रियाएँ सकर्मक, कुछ अकर्मक, एवं कुछ दोनों प्रकार की होती हैं ।
'जानना' को यदि हम एक क्रिया के रूप में देखें तो 'जानना' ऐसी ही एक क्रिया है । सकर्मक भी, और अकर्मक भी । और हम सामान्यत: उसे सकर्मक की ही भाँति देखते हैं ।
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>>>>>>>>उन दिनों -71>>>>>>
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April 09, 2010
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