April 15, 2010

साँसें

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फेस-बुक पर एक मित्र की लिखी पंक्तियों को पढ़ते हुए, अनायास मन में उठी एक कविता
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साँस लेना भी कैसी आदत है !
जी नहीं ये तो इक इबादत है
जिन्दगी के हर-इक पल का हिसाब,
आपसे माँगती हैं ये जनाब !
इनको मजबूरी मत समझ लेना,
इनको तकदीर ही बना लेना !
एक दिन साँसें टूट जायेंगी,
और तकदीर रूठ जायेगी ,
इसलिये खुदा का शुक्रिया करना,
इस तरह जिन्दगी जीते रहना

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