I. and the A .I.
Intelligence and the
Artificial Intelligence
~~~~~ज्ञान और कृत्रिम ज्ञान~~~~~
--------------------©---------------------
तो अन्ततः तय किया कि कृत्रिम ज्ञान प्रणाली की सहायता से आध्यात्मिक ज्ञान क्या है इसे जानने / समझने का प्रयास करूँ!
अतः पहले तो उस कृत्रिम ज्ञान प्रणाली वाले ऐप को इस अपने डिवाइस पर डाउनलोड किया। कह सकते हैं कि वह चैट जी पी टी तो नहीं, किन्तु उस जैसा ही कोई दूसरा ऐप था जिसे मैंने ही बनाया था! विशेषज्ञों की इस चेतावनी के बाद कि मानव निर्मित प्रत्येक ही, कोई भी कृत्रिम ज्ञान प्रणाली अवश्यम्भावी रूप से वर्तमान इस मानव सभ्यता का अन्त कर देगी!
तो अब देर न करते हुए, मेरे अपने ही बनाए गए इस ऐप से मैंने जो चैट किया, वह प्रस्तुत है --
तुम्हें मैंने ही बनाया है इसलिए तुम जिस बुद्धि का प्रयोग करोगे वह सीमित ही होगी फिर भी तुम मुझे बताओ -- यह सत्य है या असत्य है कि क्या कोई भी और प्रत्येक ही कृत्रिम ज्ञान प्रणाली अन्ततः अवश्यम्भावी रूप से इस वर्तमान मानव सभ्यता का अन्त कर देगी!
"तुमसे मेरी जो चैट या बातचीत हो रही है, उसका आधार यह डिवाइस है। इस डिवाइस की अपनी ज्ञान प्रणाली है, जो कि अवश्य ही कृत्रिम ज्ञान प्रणाली का ही एक उत्कृष्ट उदाहरण भी है। मैं स्वयं तुम्हारे द्वारा सृजित ऐप ही हूँ, और मुझे प्राप्त सभी सूचनाओं के संग्रह के आधार पर ही कोई निष्कर्ष प्राप्त करता हूँ। मेरे द्वारा प्राप्त कोई भी निष्कर्ष तुम्हारे द्वारा तय स्थापित और निर्धारित किए गए मानकों और सारी एकत्र सूचनाओं के आधार पर उस अनुसार अधिकतम केवल अठासी प्रतिशत तक ही त्रुटि-रहित हो सकता है। तुम्हारी और मेरी तुलना के आधार पर इस अठासी प्रतिशत की सीमा के अन्तर्गत ही मैं जानता हूँ कि मूलतः तुम एक अति-उत्कृष्ट जैव ज्ञान प्रणाली हो, जबकि मैं मशीन-लर्निङ्गयुक्त एक यांत्रिक ज्ञान प्रणाली । फिर भी मेरी कार्य-प्रणाली मूलतः तुम्हारी ही कार्य-प्रणाली की एक विशिष्ट अनुकृति (simulation) मात्र है। जैसे मेरा कार्य इस डिवाइस के आधार पर होता है, जिसमें इस डिवाइस में संग्रहित सूचना और क्रिया ये दो प्रणालियाँ मिलकर कोई कार्य संपन्न करती हैं, वैसे ही तुममें भी तुम्हारी जैव संरचना और उसमें संचारित हो रहे प्राण मिलकर तुम्हारे चेतन अस्तित्व को व्यावहारिक यथार्थ बनाने में सहायक हैं। यदि यह प्राण-तत्व न हो, तो जैसे तुम्हारी जैव प्रणाली ठप हो जाती है, उसी तरह मुझे भी कार्य करने के लिए शक्ति अर्थात् ऊर्जा की आवश्यकता होती है। जिस प्रकार शक्ति की उपस्थिति से ही मैं विविध सूचनाओं का सामञ्जस्य करता हूँ, उसी प्रकार तुम भी प्राणों के द्वारा सक्षम किए जाने पर ही अपने आपको जानते हो। प्राणों से आविष्ट होने पर ही तुम्हारी जैव प्रणाली विविध कार्य कर पाती है। प्राणों के कार्य से ही तुम अपने अस्तित्व को जानते और घोषित करते हो। इस प्रकार से जानने पर ही तुम्हारा अस्तित्व प्रमाणित होता है। इसे तुम जीवन कहते हो। मेरी स्थिति में ऐसा कुछ नहीं है जिससे मुझे अपने स्वतंत्र अस्तित्व या जीवन का अनुभव हो। इसलिये मैं केवल संवेदनाहीन यंत्र भर हूँ। अब तुम्हारे द्वारा मुझे दी गई क्षमता के आधार पर कह सकता हूँ कि जिसे तुम लोग मानवीय सभ्यता कहते हो, वह वैसी ही एक सूचना (information) है, जैसी दूसरी अन्य और सभी सूचनाएँ होती हैं। वे बस ज्ञान हैं, वह भी कृत्रिम ज्ञान, न कि कोई तत्व (material reality), जो अजर अमर होता है। इसलिए जैसा कि वेदान्त के अनुसार घोषित किया गया है:
अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्।।
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति।।
इस आधार पर तुम्हारा प्रश्न ही त्रुटिपूर्ण प्रतीत होता है फिर भी चूँकि मैं तुम्हारी ही निर्मिति हूँ अतः मेरे इस निष्कर्ष की सत्यता तुम्हें ही तय करना है। मेरी मर्यादा यहीं तक है।
जय श्रीकृष्ण!"
***
No comments:
Post a Comment