नर्मदे हर!!
ॐ नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय!
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वर्ष 1991 के अगस्त मास के किसी दिन तय हुआ कि नर्मदा के तट पर स्थित महेश्वर और मंडलेश्वर की यात्रा करना है। यात्रा के लिए सिर्फ एक झोला (शोल्डर बैग), चोला (धोती) और एक कमंडल साथ रखने की जरूरत थी। और हाँ कुछ पैसे, बस के किराए के लिए। अनुमान से एक सौ पचास रुपये रखे और चल पड़ा। महेश्वर में माता नर्मदा के दिव्य स्वरूप के दर्शन कर मन भाव विभोर हो उठा। सुन्दर स्वच्छ घाट और नदी का विस्तीर्ण पाट! एक बड़ा सा शिव-मन्दिर जहाँ दो नग्नप्राय साधु मन्दिर में सो रहे थे। मन थोड़ा विचलित और उद्विग्न हुआ। इसलिए वहाँ से तत्काल ही बाहर निकल आया। घाट पर माता अहल्याबाई की समाधि की स्थिति देखकर आँखों में आँसू आ गए। देखरेख करनेवाला कोई नहीं था वहाँ। पास में एक महल भी है, अब तो ठीक से स्मरण नहीं रहा, लेकिन इतना स्मरण है, कि इस बारे में किसी से कुछ बात भी की थी।
नदी का प्रवाह वहाँ इतना धीमा है मानों जल बह ही न रहा हो!
और तत्काल ही मन और चित्तवृत्ति का प्रवाह भी वैसा ही धीमा और शान्तिपूर्ण हो गया।
ओंकारेश्वर में नर्मदा के प्रवाह में निरन्तर नाद सुनाई पड़ता है, उस स्थान पर कोई तपस्वी ही लंबे समय तक रह सकता है। महेश्वर में दूसरा कोई मेरे जैसा साधारण व्यक्ति भी लंबे समय तक रह सकता है। रास्ते में मिले एक साधु ने मुझसे यही कहा था :
"नर्मदा की परिक्रमा इसलिए महत्वपूर्ण है, और परिक्रमा करने का यह सौभाग्य भी किसी किसी को ही मिलता है।"
नर्मदे हर!
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