"..और किराये का संगीत!"
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स्तोत्र रत्नावली में प्रकीर्ण स्तोत्र हैं जैसे आदि शंकराचार्य रचित "भजगोविन्दम्"। यह भी दो रूपों में पाया जाता है एक तो है : "चर्पटपञ्जरिका स्तोत्रम्", और दूसरा है : "द्वादश पञ्जरिका स्तोत्रम्"। याद नहीं आता कि कब से इन्हें पढ़ता आ रहा हूँ! पहले कभी इस पर ध्यान नहीं गया था कि इन्हें "प्रकीर्ण स्तोत्र" क्यों कहा जाता है। फिर शब्द-व्यसनी बुद्धि ने "प्रकीर्ण" शब्द की व्याख्या की, तो स्पष्ट हुआ यह मूलतः क+दीर्घ ऋ से बनी धातु से व्युत्पन्न है। कीर्ण, उत्कीर्ण, अवकीर्ण, विकीर्ण, प्रकीर्ण, आकीर्ण आदि। "किराना" शब्द इसी "कीर्ण" का अपभ्रंश है, इसमें संदेह नहीं। "किराना" शब्द से याद आया "घराना", और तुरंत ही याद आया भारतीय शास्त्रीय संगीत में "किराना घराना" नामक एक परंपरा भी है, जिसमें तानसेन जैसे महान संगीतज्ञ थे। तानसेन और बैजू बावरा का मुकाबला था, यह भी हमने सुना है। और सभी जानते ही हैं, कि स्वामी हरिदास बैजू बावरा के गुरु थे। जो संगीत को ईश्वर की भक्ति करने का साधन भर मानते रहे होंगे। भारतीय संगीत का प्रवेश मुग़लों के दरबार में हुआ और "घराना" शब्द प्रचलित हुआ। "घराना" शब्द संस्कृत भाषा के "गृहाणः" का अपभ्रंश जान पड़ता है। विचारणीय है कि यदि इसलाम की शिक्षा के अनुसार संगीत इसलाम-विरोधी है, और औरंगजेब का उदाहरण देखें तो भी इसमें आश्चर्य करने जैसा कुछ नहीं है। इस प्रकार, किसी भी दृष्टि से भारतीय संगीत का इस्लामी संस्कृति से सामञ्जस्य हो पाना आश्चर्य की बात है। किन्तु "किराना घराना" इसी आधार पर अस्तित्व में आया।
इस पोस्ट में इतना ही।
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