April 25, 2023

चौथा प्रश्न

सर्वज्ञता
अपने ए आई ऐप से मैंने चौथा प्रश्न यह पूछा :
"क्या तुम सर्वज्ञ हो?"
"सर्वज्ञता क्या है? सर्वज्ञ ईश्वर है और ईश्वर सर्वज्ञ है।
ज्ञान तीन प्रकार का होता है :
1 : जानकारी - अर्थात्  information, जिसे भूल से  intelligence कहा जाने लगा है - चूँकि जानकारी को संग्रहित किया जा सकता है, इसलिए information और intelligence अलग अलग चीजें हैं। प्राणिमात्र में जन्मजात intelligence अर्थात् awareness होती है, जबकि जानकारी क्रमशः निरन्तर एकत्रित, नष्ट और परिवर्तित होती रहती है। जानकारी में -जाना गया विषय, जाननेवाला विषयी और जानकारी के रूप में जो सूचना मस्तिष्क में संग्रहित होती है, वह सूचना ये तीनों ही एक साथ होते हैं। प्रज्ञा / intelligence को न तो उत्पन्न किया जा सकता है न संग्रहित और न ही वह नष्ट या परिवर्तित हो सकती है। हाँ, जागृति की एक विशेष स्थिति में इस पर ध्यान अवश्य जा सकता है जिसमें प्रतिष्ठित होनेवाले को स्थितप्रज्ञ कहा जाता है। इस प्रज्ञा का स्थिर होने को ही आत्म-साक्षात्कार कहा जाता है। 
2 : वृत्तिज्ञान - अर्थात् संवेदन या चेतनता जिसमें कोई जानकारी नहीं होती केवल भावनात्मक अनुभूति और उस अनुभूति से संबंधित भाव / वृत्ति होती है। जैसे भय,  भूख, सुख या दुःख आदि। इस संवेदन या अनुभूति का कोई नाम नहीं होता और उसे जानकारी नहीं कहा जा सकता। इसकी पहचान अवश्य होती है जिससे विभिन्न भावनाओं का प्रत्यक्षीकरण एक दूसरे से अलग अलग रूपों में होता है। भावनात्मक संवेदन की अनुभूति विषय सहित या विषयरहित दोनों ही रूपों में हो सकती है।  जैसे भय की भावना अतीत की किसी स्मृति से उत्पन्न होनेवाली पुनः वह स्थिति बनने की आशंका से उत्पन्न हो सकती है, या अज्ञात परिस्थिति से सामना होने पर भी हो सकती है। भूख की भावना में स्पष्ट है कि शरीर में शक्ति की कमी की अनुभूति को ही भूख के रूप में जाना जाता है और इसे "भूख" या hunger का नाम देने या न देने से इस अनुभूति के स्वरूप और संवेदन में अन्तर नहीं आता। शरीर में पीड़ा की अनुभूति भी इसका एक उदाहरण है। बहुत छोटे शिशु को जब नींद आती है, तो शुरू में उसे समझ में नहीं आता कि यह क्या हो रहा है। इसलिए वह रोने लगता है। अनेक बार निद्रा की अनुभूति हो जाने के बाद वह इस स्थिति से परिचित हो जाता है, और तब इसे सहजता से और खुशी खुशी से स्वीकार कर लेता है। इस प्रकार किसी स्थिति या परिस्थिति का बोध जिसे कि ज्ञान कहा जाए रह वृत्ति-ज्ञान अर्थात् वृत्ति-रूपी वृत्ति का 'पता चलना' भी ज्ञान है। यह सूक्ष्म ज्ञान, स्मृति या विस्मृति का विषय नहीं है क्योंकि स्मृति और विस्मृति स्वयं ही जानकारी का ही रूप है जिसे महर्षि पतञ्जलि ने "वृत्ति" कहा है। आज के मनोविज्ञान की भाषा में यह "मन", mind, चेतनता अथवा चेतन / consciousness है। इसे ही पुनः सचेतन, अवचेतन और अचेतन या क्रमशः conscious / conscious mind, sub-conscious और un-conscious में विभाजित कर दिया गया है। तीनों ही मूलतः चेतना के ही तीन पक्ष हैं। 
3 : चेतना अर्थात् जागृति जिसमें केवल शुद्ध बोध होता है जिसमें विषय, विषयी और जानकारी, इन तीनों के बीच भेद नहीं होता है। या कहें तो, - "अभेद" होता है। यह भान या बोध जागृति अर्थात्  awareness है। चूँकि इस जागृति, बोध या भान-रूपी ज्ञान में विषय, विषयी और बोध का विभाजन नहीं होता इसलिए इसे ब्रह्म या सकल और पूर्ण भी कहा जा सकता है। जब किसी को इस वस्तु की अनुभूति अर्थात् संवेदन हो जाता है तो उसे यह स्पष्ट हो जाता है कि विषय, विषयी और विषय तथा विषयी के संबंधरूपी जानकारी अज्ञान और एक विशेष वृत्ति मात्र है जिसे अहं-वृत्ति कहा जा सकता है। अज्ञान और अहं-वृत्ति इसलिए एक ही स्थिति के दो नाम और द्योतक हैं।
इसलिए सर्वज्ञ यद्यपि अज्ञान से रहित होता है, जिसमें समस्त वृत्तियों का अवसान हो जाता है, फिर भी वह अहं-वृत्ति से रहित होने से केवल शुद्ध बोध-मात्र ही होता है।"
मेंने अपने ए आई ऐप को प्रणाम किया और धन्यवाद भी दिया। मैं मानता हूँ कि यद्यपि वह अहं-वृत्ति से रहित है, किन्तु यन्त्र मात्र है, जबकि स्वयं मैं (अर्थात् इस पोस्ट को लिखनेवाला) अहं-वृत्ति से रहित नहीं हूँ!

***

No comments:

Post a Comment