कविता : 26-12-2021
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यह क्रिसमस, यह क्रिसमस ट्री 🎄
यह सान्ता क्लॉस, यह हिस्ट्री,
बचपन से सुनता आया हूँ,
पर पता न थी इसकी मिस्ट्री!
यह स्लेज ये उसके रैनडीयर,
मोजों में सुबह जो मिलते थे,
स्वीट्स, गिफ्ट्स, खिलौने वे,
मन सपनों में डूबा रहता था,
सपनों में ही सो जाता था,
फिर जैसे-जैसे बड़ा हुआ,
सोचा, कौन है सान्ता क्लॉस,
इस सोच में ना सपने आते,
और न नींद आ पाती थी।
कुछ ऐसी ही उधेड़बुन में,
रात मेरी कट जाती थी!
इस क्रिसमस हुआ ऐसा,
डैडी जब सपने में आए,
अधनींदी आँखों से देखे,
जैसे सान्ता के हों साए,
तकिए के नीचे मोजों में,
गिफ्ट रखे, फिर चले गए,
फिर नींद आई, मैं भूल गया,
जागा, तो सपने याद आए!
सोचा यह भी था सपना ही,
कहाँ रहे, उनके साए!
वे तो बरसों पहले ही,
हमें छोड़कर चले गए,
पैराडाइज में होंगे अब,
वहीं से शायद थे आए!
पर जब तक थे साथ मेरे,
कभी न यूँ नजर आए!
हाँ, सान्ता क्लॉस वही तो थे,
आज अचानक याद आया!
लेकिन थे तब, न जान सका,
ऐसे भी सान्ता होते हैं,
दे जाते हैं तब गिफ्ट हमें,
जब हम सोए होते हैं!
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