अतीत के स्मृतिचिह्न
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सन्दर्भ :
E T Commentary
Dec. 18, 2021, 11:00 P M. I S T
Parul Pandya Dhar,
When Hindus Converted Without Much Fuss, Cuss or Trouble.
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"उन दिनों" शीर्षक से लिखे पोस्ट्स का क्रम तो समाप्त हो गया, किन्तु जो बीत गये, उन दिनों की प्रासंगिकता तो बनी ही रहती है।
कॉलेज की शिक्षा पूरी होने पर संतोषप्रद नौकरी प्राप्त हुई । स्वाभाविक ही था कि अरमान पंख खोलकर उड़ने लगे। चूँकि विवाह से मुझे बचपन से ही घृणा की हद तक अरुचि थी, और जानकारी के अभाव में प्रायः हर युवा ही जैसे इस बारे में ठीक से कुछ तय कर पाने में असमंजस में रहता है, मैं भी इसी तरह असमंजस और मानसिक अपरिपक्वता के कारण नहीं, बल्कि अपने आध्यात्मिक रुझान के चलते विवाह को इस मार्ग पर एक रोड़ा अनुभव करता था। मेरे माता-पिता भी मेरी गतिविधियों के मूक दर्शक तो थे, इसीलिए मौका मिलते ही मैंने उनसे स्पष्ट कर दिया था कि वे मेरे विवाह के बारे में चिन्ता न करें। मुझे विवाह नहीं करना है।
अपने कार्यस्थल पर मैं प्रायः बस से आता-जाता था। उन दिनों उस मार्ग पर म. प्र. राज्य पथ परिवहन निगम (MPSRTC) के द्वारा संचालित बसें आसानी से मिल जाया करती थीं। वैसे तो निजि तौर पर चलाई जानेवाली बसों की तुलना में वे सुस्त गति से चलती थीं, किन्तु भीड़-भाड़ से दूर रहने के लिए मैं उनमें ही यात्रा किया करता था ।
ऐसी ही एक बस पर पहली बार जब मैंने "त.रोड़ से म.रोड़" या "म. रोड़ से त. रोड़" पढ़ा तो कुछ आश्चर्य हुआ। फिर पता चला वे बसें तराना रोड़ से महिदपुर-रोड के मार्ग पर चलती थीं और बीच में घोंसला नामक स्थान पर मैं उनसे चढ़ या उतर सकता था।
यह एक सांस्कृतिक सामाजिक क्रान्ति जैसा प्रतीत हुआ।
संक्षेप में, --तथ्यों की तरोड़-मरोड़ करना, जिनके पीछे अपना कोई राजनीतिक स्वार्थ होता है ।
आज जब इकॉनामिक टाइम्स में पारुल पण्डया धर का लेख पढ़ा, तो अनायास याद आया। लेखिका ने बड़ी चतुराई से इस तथ्य का वर्णन किया है कि इतिहास के तथ्यों को कलाकृतियों में भी देखा जा सकता है। उन्होंने 'विनय-पिटक' का सन्दर्भ देते हुए उस घटना का वर्णन किया है जब तीन ब्राह्मणों ने भगवान् बुद्ध के चमत्कारों से प्रभावित होकर अपने ब्राह्मण / हिन्दू धर्म का त्याग किया और बौद्ध धर्म में दीक्षित हुए!
यहाँ बड़ी ही कुशलता से लेखिका इस तथ्य से हमारा ध्यान हटा देती हैं कि उस काल में जब 'हिन्दू' शब्द का अस्तित्व तक नहीं था, बौद्ध धर्म उसी सनातन धर्म की एक शाखा था जिसे वैदिक या आस्तिक धर्म भी कहा जाता है।
"एस धम्म सनंतनो"
या,
"एषः धर्मः सनातनो"
उसी सनातन-धर्म की पहचान है।
इन्हीं जैसे बुद्धिजीवियों ने इस प्रकार से सनातन-धर्म की अनेक शाखाओं को भिन्न भिन्न धर्म की तरह इंगित कर इस तथ्य की ओर से हमारी आँखों पर पर्दा डाल दिया है कि 'हिन्दू' धर्म, जैन, बौद्ध, सिख धर्म जैसा ही और वैदिक आर्य धर्म का ही एक प्रकार मात्र है, और अलग से कोई स्वतंत्र धर्म नहीं है!
इसी प्रकार और इसी के साथ, इस्लाम, ईसाई, पारसी और यहूदी आदि परंपराओं को 'धर्म' कहकर भी हमें भ्रमित किया जाता है।
फलश्रुति :
यात्री कृपया ध्यान दें!
तराना-रोड से महिदपुर-रोड के मार्ग पर चलनेवाले सभी बसें 'घोंसला' से होकर गुजरती हैं!
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