December 16, 2021

राष्ट्रभाषा और राजभाषा

भाषा-चिन्तन

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भारतवर्ष के स्वतन्त्र होने के समय यद्यपि हिन्दी, जन-गण-मन में सबकी और देश की भी जन-सामान्य की भाषा हो चुकी थी, किन्तु कुछ विघ्नसंतोषी प्रवृत्ति के लोग इस तथ्य को झुठलाने और इस तथ्य को आँखों से ओझल कर देने के लिए उर्दू तथा अंग्रेजी के साथ साथ तमिऴ को भी हिन्दी से पृथक् सिद्ध करते हुए लोगों के मन में हिन्दी के प्रति द्वेष की भावना पैदा कर रहे थे।

अपने जीवन के पिछले 50 वर्षों में मैंने इन भाषाओं के बारे में जितना कुछ भी समझा उससे मैं इसी निष्कर्ष पर पहुँचा कि इन तीनों भाषाओं का व्याकरण और संरचना भले ही हिन्दी के व्याकरण और संरचना से भिन्न हो, इनके अधिकांश शब्दों की व्युत्पत्ति को सँस्कृत के मूल पदों (शब्दों)  की सहायता और तुलना से बखूबी समझा और समझाया जा सकता है। हिन्दी और शेष दूसरी सभी भारतीय भाषाओं के संबंध में तो यह प्रश्न किसी के मन में कभी शायद ही आता होगा। सच तो यह है कि उपरोक्त तीनों भाषाओं के बारे में भी यही सत्य है कि किन्हीं भी दो या अधिक भाषाओं को सीखते हुए हम उन सभी भाषाओं को अनायास ही और भी अधिक संपन्न और समृद्ध करते हैं।

यह भी मानना होगा कि हिन्दी या किसी भी एक विशेष भाषा को संपूर्ण देश की राष्ट्रभाषा बनाने में अवश्य ही कुछ बड़ी और व्यावहारिक कठिनाइयाँ तो हैं ही। इसे समझने से पहले तो यही उचित होगा कि राष्ट्रभाषा के और राजभाषा के प्रयोजन पर हम ध्यान दें। इस बारे में दो मत नहीं हो सकते कि किसी भी स्थान,  प्रान्त, प्रदेश या राज्य का अधिक से अधिक सरकारी कार्य वहाँ की स्थानीय भाषा में ही होना और किया जाना चाहिए। किन्तु  केन्द्रीय स्तर पर क्या इसकी व्यवहार्यता / उपयोगिता संदिग्ध ही नहीं है? क्या कुछ विघ्न-सन्तोषियों के हिन्दी-विरोध के चलते, हिन्दी को बलपूर्वक केन्द्रीय स्तर पर देश की सरकारी भाषा के रूप में थोपा जा सकता है? 

भले ही वे लोग शेष भारत से असहमत हों, फिर भी उनके मत की उपेक्षा भी नहीं की जा सकती ।

फिर क्या हम अंग्रेजी को केन्द्रीय स्तर पर देश के सरकारी काम की भाषा की तरह स्वीकार नहीं कर सकते? 

इस प्रकार एक ओर स्थानीय स्तर पर देश के विभिन्न हिस्सों में सरकारी कामकाज वहाँ की स्थानीय भाषा में किया जा सकता है, जबकि इसके ही साथ साथ, पूरे देश के सरकारी कामकाज के लिए अंग्रेजी का प्रयोग भी स्वीकार्य हो सकता है। 

अंग्रेजी क्यों? 

किन्हीं भी कारणों से विगत दो-तीन सौ वर्षों के समय में अंग्रेजी ने भारत के सरकारी कामकाज के रूप में (घुस)पैठ कर ही ली है, तो देशहित के लिए क्यों न उस पूरी पद्धति / व्यवस्था और प्रणाली / system का पूरा पूरा लाभ उठाया जाए? केवल हठ, पूर्वाग्रह या जिद के चलते, क्यों नए सिरे से हिन्दी को बलपूर्वक लागू करते हुए, श्रम करते हुए, कठिनाइयों का सामना करते हुए अनावश्यक गतिरोध और विवाद पैदा किया जाए?

अंग्रेजी भाषा के पक्ष में सर्वाधिक शक्तिशाली और विचारणीय तथ्य यह है कि इसका उद्गम जिस परंपरा / शिक्षा से हुआ है वह आंग्ल परंपरा स्वयं भी ऋषि अंगिरा / अंगिरस् प्रणीत है और यह मूलतः अंगिरा / अंगिरस् शैक्षम् के रूप में  सुदूर अतीत से प्रचलित है । इसी अंगिरा का सज्ञात / सजात / अपभ्रंश हुआ  :

Angel,

क्योंकि तात्पर्य और प्रयोजन के रूप में यही  Angel  का मूल भी है। क्या  Angel  शब्द की कोई और संतोषजनक व्युत्पत्ति हमारे पास है? 

मान लें  Angel फ़ारसी के फ़रिश्तः का समानार्थी है तो भी यह फ़ारसी शब्द अवश्य ही मूलतः संस्कृत शब्द 'पार्षदः' से व्युत्पन्न है, इसे समझना कठिन नहीं है, क्योंकि 'पार्षदः' का तात्पर्य है वे लोग जो किसी देवता की परिषद् (सभा) के सदस्य होते हैं -- विशेषतः भगवान् विष्णु के ।

इस प्रकार  Angel शब्द अवश्य ही अंगिरा का ही सज्ञात है। 

अब यदि हम पुनः अंग्रेजी भाषा को अपने सरकारी कामकाज की भाषा बना लें तो हमारे बहुत से अनावश्यक उन व्ययों पर रोक लग जाएगी, जो वर्तमान में हिन्दी के प्रयोग में खर्च किए जा रहे हैं। यह पुनरावृत्ति (unnecessary repetition) अवश्य ही रोकी जानी चाहिए और इस धन का उपयोग अन्यत्र वहाँ किया जाना चाहिए जहाँ हमारे पास पैसे की कमी से बहुत से अधिक जरूरी कार्य अधूरे पड़े हैं। 

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