October 28, 2021

पूर्णमिदम्

रिश्ते ही रिश्ते

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अभी दस मिनट पहले सोकर उठा, तो मुझे याद आया कि इस ब्लॉग की शुरुआत 'उन दिनों' शीर्षक से लिखी पोस्ट्स से हुई थी। बहुत दिनों तक यह पता नहीं चल रहा था, कि इसका अंत कैसे होगा। 

कल किसी से बातें करते हुए बॉलीवुड के रिश्तों पर बातें होने लगी। याद आया बॉलीवुड से अपरिचित उस व्यक्ति का कथन :

"Conflict in any relationship degenerates, deteriorates and destroyes the relation."

क्या सचमुच किसी से किसी का कोई रिश्ता होता भी है? 

या, हर किसी का, किसी समय पर किसी जरूरत, भावना, भय, लोभ, आकर्षण या विकर्षण, उत्सुकता, विचार या परिस्थिति से ही कोई तात्कालिक रिश्ता होता और हो सकता है।

इस भावना को किसी आदर्श, सिद्धान्त, महान ध्येय, कर्तव्य, नैतिकता, पाप या पुण्य, यहाँ तक कि धर्म या अधर्म आदि के नाम से जोड़कर कोई काल्पनिक स्थायित्व भी दिया जा सकता है और उसे किसी ऐसे ही महान ईश्वर आदि से भी प्रायः जोड़ा जाता है। क्या किसी रिश्ते का अपना स्वतंत्र अस्तित्व होता भी है? क्या किसी रिश्ते की कोई स्वतंत्र सत्ता होती है? 

किन्तु इस या किसी भी रिश्ते की डोर का एक सिरा तो 'मैं' और दूसरा कोई या कुछ और होता है। 

यद्यपि दोनों ही सिरे और यह डोर भी क्षणिक ही होती है, स्मृति का सातत्य उसे किसी हमेशा (!) या कुछ समय तक के लिए रहने वाली वस्तु मान लेता है। 

इस प्रकार जीवन में सभी की और हर किसी की कोई न कोई भूमिका तो होती है किन्तु किसी का किसी से सचमुच क्या कोई संबंध या रिश्ता होता या हो भी सकता है?

पिछले पोस्ट्स स्क्रोल करते हुए 'उन दिनों' को जब टटोल रहा था, तो एक कविता पर नजर पड़ी।  शीर्षक है :

हिरण्यगर्भ / cosmic mind. 

और अचानक महसूस हुआ कि 'उन दिनों' के क्रम पर अब पूर्ण विराम लगाया जा सकता है।

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