October 02, 2021

फ़िलहाल और हमेशा

कविता : 02-10-2021

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वक्त आईना है, इसमें अपनी शक्ल देख लीजिए, 

वक्त आईना है, इसमें अपनी अक्ल देख लीजिए! 

हमेशा जिसको कहें, ऐसा कुछ, कहीं भी नहीं होता, 

सभी कुछ अभी, या बस, फ़िलहाल ही है, जो होता! 

जो गुजर गया, कभी हुआ था भी, कि नहीं, क्या पता, 

जो होगा, हो सकता है, उम्मीद जिसकी, शायद हो पता। 

वक्त चलता ही रहता है हमेशा, हमवार, लगातार, मगर,

फिर भी ठहरा भी रहता है, वो फ़िलहाल की तरह अभी!

ये अजीब लगता है कि ऐसी भी क्या शै है यह वक्त,

जो कभी चलता है, चलता भी नहीं, बदलता है कभी!

वक्त बदले या न बदले, आप बदल सकते हैं या नहीं,

ये अगर मालूम हो जाए, कि आप क्या हैं, क्या नहीं!

तो खुल जाएगा यह राज भी कि क्या शै है यह वक्त,

आपके ठहरने, बदलने, से ही तो ठहरता, बदलता है वक्त!

वक्त आईना है बस, दिखलाता है, दर-असल क्या हैं आप,

पहले क्या थे, क्या नहीं, फ़िलहाल मगर क्या हैं आप!

आप क्या होंगे, ये भी बस तसव्वुर, है आपका ख़याल,

आप हमेशा ही रहते हैं फ़िलहाल, फिर भी बेमिसाल!

वक्त आईना है, इसमें अपनी शक्ल देख लीजिए,

वक्त आईना है, इसमें अपनी अक्ल देख लीजिए!

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