October 07, 2021

नवरात्र का प्रथम दिन

पिछला एक दशक 
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याद नहीं किस समय अथर्वशीर्ष का पाठ करना प्रारम्भ किया था, लेकिन अब दस से भी अधिक वर्ष हो चुके हैं। दो वर्ष पहले जब इस स्थान पर रहने आया था, तब लग रहा था शायद यहाँ मैं एक-दो साल तक रह सकूँगा। दो साल पूरे होनेवाले हैं।
दो साल पहले, अर्थात् 2019 के नवरात्र के समय, और वैसे भी आसपास घूमते रहना बहुत अच्छा लगता था। फिर 2019 के अन्त में कोरोना की बीमारी के समय भी यहाँ इतना एकान्त था कि घूमते रहने में कोई बाधा कभी नहीं हुई। बल्कि समय बहुत अच्छा बीतता था।
2019 के नवरात्र में यूँ ही सुबह-शाम घूमते हुए पार्क में लगे हुए पेड़ों का निरीक्षण करता था। यहाँ चम्पा, कनेर, कदम्ब, बबूल, नीम और दूसरे भी ऐसे अनेक वृक्ष लगे हुए हैं जिनके नाम तक मुझे नहीं मालूम। उसी दौरान चम्पा के पेड़ों पर छोटे छोटे शंख दिखलाई पड़े तो आश्चर्य हुआ था। यह तो मालूम था कि इस प्राणी को घोंघा या  snail 🐌  भी कहते हैं, किन्तु वे इन पेड़ों पर कैसे पहुँच गए इस बात से थोड़ा अचरज होता था। 
अभी दो हफ्ते पहले निचले तल पर लगे हुए उस बड़े से आईने के किनारे पर एक घोंघा दिखा, तो सोचा शायद मृत होगा। आज ही अपने स्वाध्याय ब्लॉग में 'प्रथमा शैलपुत्री' शीर्षक से एक पोस्ट लिखा ही था, कि दोपहर में एक और भी, बहुत छोटा घोंघा खिड़की पर दिखाई दिया और तय किया कि यह जीवित है या नहीं, इसका पता लगाऊँगा। उन दोनों को उस स्थान से थोड़ा बलपूर्वक खींच कर निकाला, और एक तश्तरी में रखकर उसमें थोड़ा पानी भर दिया । केवल इतना कि वे पूरी तरह डूब
 गए। पाँच मिनट के बाद एक में हलचल होती दिखलाई पड़ी।
 और दो-तीन मिनट के बाद, दूसरे में भी। फिर वे दोनों अपनी -
 अपनी खोल से बाहर निकल आए। और दो मिनट बाद तो उन  दोनों के दो सींग, शृंग (एन्टीना) भी उभर आए। 
तब मुझे पता चला कि वे इतने दिनों से hibernation अर्थात् कल्पवास में थे। शायद वे शीत-ऋतु से ग्रीष्म-ऋतु तक ऐसे ही किसी हरे पेड़ पर चिपटे रहकर, उसके रस को पीकर वह समय बिताते होंगे।
थोड़ी देर तक उन्हें कौतूहल से देखता रहा, फिर तश्तरी से पानी बाहर फेंक दिया, तो वे उसकी दीवार पर चढ़ने लगे। तब उन्हें तश्तरी के साथ उठाया और बाहर जाकर नये नये उसे हुए एक छोटे से चम्पा की शाखा पर डाल दिया। अब शायद उनका यह समय ठीक से बीत जाएगा। आईने या खिड़की पर तो क्या पता वे कब तक जिन्दा रहते! रह पाते भी या नहीं! 
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एक टिप्पणी :
10-10-2021
कल एक मित्र ने और गूगल ने भी बतलाया कि घोंघे के भीतर कुछ ऐसे सूक्ष्म जैविक प्राणी प्रोटोज़ोआ होते हैं, जो त्वचा से हमारे शरीर में प्रविष्ट होकर गंभीर बीमारी का कारण बन सकते हैं। यहाँ इस जानकारी को इसलिए शेयर कर रहा हूँ कि भूलकर भी आप कहीं अनजाने में, उत्सुकता और लापरवाही से उसे न छू लें।
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