आज की कविता
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कुछ भी !
(न) नींद आयेगी न ख़्वाब आयेंगे,
न दर्द के ख़तों के जवाब आयेंगे ।
आँखें हो जायेंगी हालाँकि बोझिल,
फ़िर भी न चैन-ओ-सवाब आयेंगे ।
वक़्त बीत जायेगा यूँ ही तन्हाँ तन्हाँ,
दोस्त फिर भी नहीं जनाब आयेंगे,
रौशनी जब हो चुकी होगी बेनूर,
तब कहीं जाके रुख़े-शबाब आयेंगे ।
जाम रहने दे अभी मेरे खाली,
नज़र-ए-साक़ी से दौरे-शराब आयेंगे ।
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कुछ भी !
(न) नींद आयेगी न ख़्वाब आयेंगे,
न दर्द के ख़तों के जवाब आयेंगे ।
आँखें हो जायेंगी हालाँकि बोझिल,
फ़िर भी न चैन-ओ-सवाब आयेंगे ।
वक़्त बीत जायेगा यूँ ही तन्हाँ तन्हाँ,
दोस्त फिर भी नहीं जनाब आयेंगे,
रौशनी जब हो चुकी होगी बेनूर,
तब कहीं जाके रुख़े-शबाब आयेंगे ।
जाम रहने दे अभी मेरे खाली,
नज़र-ए-साक़ी से दौरे-शराब आयेंगे ।
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