आज की कविता
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सार्थकता
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रेत पर ठहरी नाव,
देखती है नदी को,
सतृष्ण नम आँखों से,
बस प्रतीक्षा नाविक की,
जो ले जाए उस पार,
फिर वहाँ पर और कोई,
दूसरा या फिर वही,
जो ले आये इस पार,
या कि बस डोलती रहे,
ठहरी रहे वह नदी में ही,
तैरती हो या कि ठहरी,
या डूब जाये मझधार!
या कि बरसे खूब बारिश,
लील ले सैलाब फैला,
और वह सैलाब में भी,
हो रहे बस नदी होकर,
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सार्थकता
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रेत पर ठहरी नाव,
देखती है नदी को,
सतृष्ण नम आँखों से,
बस प्रतीक्षा नाविक की,
जो ले जाए उस पार,
फिर वहाँ पर और कोई,
दूसरा या फिर वही,
जो ले आये इस पार,
या कि बस डोलती रहे,
ठहरी रहे वह नदी में ही,
तैरती हो या कि ठहरी,
या डूब जाये मझधार!
या कि बरसे खूब बारिश,
लील ले सैलाब फैला,
और वह सैलाब में भी,
हो रहे बस नदी होकर,
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