July 10, 2017

The Self and the ego / अहम् और अहं-मति

आज की संस्कृत रचना
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कर्ताभोक्ता तु कर्तृत्वे,
कर्तृत्वमपि अहंमतेः ।
अहंमतिस्तु अहम्येव,
भूत्वा भूत्वा विलीयते ॥
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अर्थ :
कर्तृत्व और भोक्तृत्व कर्ता होने की (भ्रमपूर्ण) भावना से ही उपजते हैं । यह कर्ता होने की (भ्रमपूर्ण) भावना भी अहं-मति में, अहं-मति से ही उपजती है । किंतु इस अहं-मति का उद्गम और विलय अहम् ( अविकारी आत्मा / परब्रह्म) से और अहम् ( अविकारी आत्मा / परब्रह्म) में ही पुनः पुनः हुआ करता है ।
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A संस्कृत / saṃskṛta stanza composed today. 
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English transliteration :
kartābhoktā tu kartṛtve,
kartṛtvamapi ahaṃmateḥ |
ahaṃmatistu ahamyeva,
bhūtvā bhūtvā vilīyate ||
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Meaning :
The sense of oneself as a doer or as the one who experiences the fruits of action, emerge from and dissolve into the I-sense only. But this I-sense, -again and again, emerges from or dissolves into the Self only. 
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