July 15, 2017

श्रीगणेश आख्यान

श्रीगणेश आख्यान
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नावघाटखेड़ी और खेड़ीघाट, इन्दौर-खंडवा रोड पर बड़वाह से २ किलोमीटर दूर नर्मदा पर बसे दो गाँव हैं जो पिछले सौ-पचास वर्षों से एक पुल से जुड़े हैं । उन दोनों तटों के बीच इससे भी पहले से नावघाटखेड़ी से खेड़ीघाट  के बीच नावें चलती थीं, -अभी भी चलती हैं । नावघाटखेड़ी में तट से कुछ ऊँचाई पर एक पुराना गणेश-मन्दिर है जहाँ भगवान श्रीगणेश की दर्शनीय, सुन्दर प्रस्तर-प्रतिमा  है । इसकी प्रतिष्ठा देवी अहिल्याबाई होलकर द्वारा की गई थी ।
कभी-कभी मैं वहाँ दो मिनट के लिए बैठ जाता था ।
ऐसे ही समय दो ग्रामीण चर्चा कर रहे थे ।
"गणेशजी ही सृष्टिकर्ता, सृष्टि के पालनकर्ता और संहारकर्ता हैं ।"
"और सृष्टि?"
"वह भी वही है, उनसे अभिन्न ।"
"वो कैसे?"
"वे ही प्राणीमात्र के मन में बुद्धि के रूप में व्यक्त होते हैं ।"
"फिर भिन्न-भिन्न लोगों की बुद्धि एक जैसी क्यों नहीं होती?"
"क्योंकि प्रत्येक मनुष्य में अहं के रूप में उसकी अहंकार की वृत्ति उसकी बुद्धि को भ्रमित किए रहती है ।"
"अहंकार की वृत्ति मतलब?"
"मैं कर्ता हूँ, मैं भोक्ता हूँ, इस प्रकार की बुद्धि से मोहित हुआ वह अपने-आपको ठीक से जाने-समझे बिना ही स्वयं को अहंकार से बाँध लेता है ।"
"ठीक से जानना समझना क्या है?"
"बुद्धि के स्पष्ट, प्रखर, उत्साहपूर्ण और शुद्ध होने पर संसार और उसके भोगों की अनित्यता के प्रति मनुष्य में वैराग्य-बुद्धि जागृत होती है ।"
"जिनकी ऐसी बुद्धि नहीं है वे क्या करें?"
"वे बस भगवान श्रीगणेश के ही वास्तविक कर्ता, भोक्ता, संहर्ता होने के बारे में चिन्तन करें तो उनकी बुद्धि शुद्ध हो जाएगी ।"
किंतु कोई ऐसा करे इसके लिए उसे कहाँ से प्रेरणा मिलेगी?"
"भगवान श्रीगणेश प्रथम देवता हैं । वे ही हमारे मन में सर्वप्रथम बुद्धि के रूप में प्रकट होते हैं । वह बुद्धि ही संसार में असंख्य प्रकार के व्यक्तियों की अलग-अलग बुद्धि का रूप लेकर उन्हें किसी विशेष शुभ या अशुभ हितप्रद या क्षतिप्रद कार्य में प्रवृत्त करती है । इस प्रकार से मन के प्रवृत्त हो जाने के बाद ही संसार के विविध प्रकार उसे अनुभव होते हैं । किंतु जो व्यक्ति अपने भीतर ही इस बुद्धि का आगमन होते ही उसके दर्शन कर लेता है उसे उतना ही पुण्य मिलता है जितना श्रद्धायुक्त किसी मनुष्य को विभिन्न मन्दिरों में स्थापित श्रीगणेश के विभिन्न रूपों के दर्शन, पूजा आदि से मिलता है । भीतर प्रकट बुद्धि के रूप में गणेश ही विघ्न और विघ्नहर्ता भी हैं ।वे ही विज्ञ और विज्ञान हैं । चूँकि वे आत्मा अर्थात् परमात्मा ही हैं, इसलिए उस रूप में वे ही अध्यात्म भी हैं । चूँकि वे इस मृण्मय भौतिक देह में विद्यमान प्राण और चेतना के कार्य के एकमात्र और आदि-कारण हैं इसलिए वही उनका आधिभौतिक रूप है । चूँकि उनका उन्मेष होने के बाद ही सगुण ब्रह्म अर्थात् जगत की प्रतीति होती है इसलिए वे ही परब्रह्म हैं । चूँकि वे ही इस भौतिक जगत् का एकमात्र आधार और अधिष्ठान हैं इसलिए वे ही अधिभूत हैं । चूँकि वे ही जगत-रूपी कार्य-ब्रह्म और कारणब्रह्म हैं इसलिए वे ही अधियज्ञ हैं । और वे ही अधिदैव भी हैं क्योंकि समस्त अन्य देवता उनकी प्रसन्न होने पर ही दर्शन देते हैं और उनकी कृपा होती है ।
सुनो :
अध्याय 8, श्लोक 1,

अर्जुन उवाच :

किं तद्ब्रह्म तदध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम ।
अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते ॥
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(किम् तत् ब्रह्म किम् अध्यात्मम् किम् कर्म पुरुषोत्तम ।
अधिभूतम् च किम् प्रोक्तम् अधिदैवम् किम् उच्यते ॥)
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भावार्थ :
अर्जुन ने प्रश्न पूछा :
हे पुरुषोत्तम ! वह (तत् नाम से वेदों में जिसका वर्णन है) ब्रह्म क्या है? अध्यात्म जिसे कहते हैं, वह क्या है ? तथा कर्म जिसे कहते हैं वह क्या है ? अधिभूत किसे कहा गया है, तथा अधिदैव किसे कहा गया है?
(श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 8, श्लोक 1)
गीताजी तो विद्वानों और पंडितों के पढ़ने-समझने के लिए है।  हमारे जैसे लोगों के लिए वह सब बहुत कठिन है।  लेकिन अपने भीतर भगवान श्रीगणेश के दर्शन कर लें तो सब बहुत आसान हो जाता है।  वही गणेशजी यहाँ और सभी मंदिरों में या पूजा के लिए सुपारी के गणेश के रूप में, उस माध्यम से हमारा ध्यान हमारे भीतर विद्यमान उनके वास्तविक स्वरूप की ओर आकर्षित करते हैं।"
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"कितने का है मोबाईल?"
"साढ़े आठ हज़ार का ।"
"कमाल की चीज़ है ।"
"हाँ, है तो सही!"
उनमें से एक ने उसे देखते हुए ’स्क्रॉल’ किया और कानों में आला लगाकर कुछ सुनने लगा ।
मोबाईल के स्क्रीन पर कोई लड़की नृत्य करती हुई गा रही थी । वास्तव में ’रिज़ॉल्यूशन’ इतना  बढ़िया था कि हैरत हो रही थी ।        
"कमाल की चीज़ है ।"
"इसमें भजन भी हैं !"
"है न कमाल की चीज़?"
"हाँ, लेकिन बुढ़ापे के कारण मेरी तो आँखें भी खराब हो गई हैं और कानों से सुनाई भी कम पड़ता है ।"
दूसरा जो अभी नवयुवक ही था उसने मानों सुना ही नहीं । फिर बोला,
"हाँ, हम लोगों के लिए तो बहुत काम की कमाल की चीज़ है ।"
वह बाईक स्टॉर्ट करते हुए बोला ।
"बैठो, तुम्हें छोड़ देता हूँ थोड़ी दूर तक!"
"बेटा, तुम नौजवान हो, मैं बूढ़ा, तुम्हारे नाक, कान, आँखें, हाथ-पैर, सेहत, सब अच्छी कंडीशन में हैं इसलिए तुम कमाल की चीज़ों का, और ज़िन्दगी का भी मज़ा लूट सकते हो । मैं सोचता हूँ कि क्या नाक, कान, आँखें, हाथ-पैर, सेहत, उनसे और भी बहुत ज़्यादा कमाल की चीज़ नहीं हैं जिनसे ही तुम यह सब कर पाते हो?"
बूढ़ा उसकी बाईक पर बैठते-बैठते बोल रहा था ।
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