July 05, 2017

लोपामुद्रा

आज की कविता
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अवसर !
लोपामुद्रा वह विलुप्त सी,
वह जो शुद्ध कमाई थी !
लेकिन किसने जाना था,
अपनी नहीं पराई थी !
उसे छिपाकर रक्खा था,
मैंने जिस लॉकर में बन्द,
उसे खोल ना पाया लेकिन,
मन में मेरे समाई थी !
लोपामुद्रा! तुम्हें देखकर,
कितना मेरा मन हर्षाया,
और तुम्हें वापस करने में,
घबराया सा मैं शरमाया !
एक मिलेगा फिर से अवसर,
इस बार नहीं घबराऊँगा,
लोपामुद्रा! तुम्हें छोड़कर
लोपामुद्रा! लो पा लूँगा !
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©

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