July 08, 2017

कविता की उम्र

प्रेरणा : एक मराठी कविता
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मन की उलझनें, या उलझनों भरा मन,
कहना है कठिन, पर कहूँ भी तो किससे ?
हरसिंगार की वर्षा, फूलों की भीनी गंध,
महसूस तो होती है, दिखलाऊँ तो किसे?
शब्दों की लड़ी, लड़ी में पिरोये गीत,
सुरीले तो हैं, पर सुनाएगा कौन मुझे ?
पावस के धारे हैं, धारों में फुहारें हैं,
भिगोते तो हैं, पर भीगेगा साथ कौन?
तुम्हारा वो जो साथ था, साथ थी जो प्रीति,
यूँ याद तो नहीं रहती, भूलेगा लेकिन कौन?
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पुनः
एक उलझन यह भी,
कि इस उम्र में ऐसी कविता रचना लिखना कितना ठीक है?
कविता की उम्र??
कविता की कोई उम्र कहाँ होती है!
कभी-कभी तो कोख में ही मिटा दी जाती है,
कभी-कभी जन्म भी लेती है,
तो होती है किसी की लाड़ली,
किशोरी, नवयौवना, या प्रौढ़ भी !
वृद्धा लाठी टेकती, झुक कर चलती हुई,
पोपले मुँह से कुछ कहती हुई,
बच्चों की तुतलाहट जैसी बोली में,
विदा भी हो जाती है अतीत में,
और फिर उमग आती है,
हृदय की झील में कमल सी ...!
कविता की कोई उम्र कहाँ होती है!
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