~~~~~~~~अहसास ~~~~~~~~
~~~एक छोटी सी कविता ~~~~
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यह मेरा शतकीय (हिंदी-का-)ब्लॉग है । वैसे 'उन दिनों' आधे से भी ज़्यादा लिखना शेष है, इसलिए, इस शतकीय के लिए एक छोटी सी कविता, जिसे शायरी भी कह सकते हैं, प्रस्तुत है :
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झूठी पहचान को ढोते रहे हम,
इसलिए उम्र भर रोते रहे हम ।
फसलें दु:ख की ही काटते रहे,
झूठ ही झूठ बस बोते रहे हम ॥
रात महफ़िल में गुजारी हमने,
सुबह से साँझ तक सोते रहे हम ॥
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आज दिनांक २२-मार्च २००९ को संशोधित ।
पुन:दिनांक २६-मार्च २००९ को आख़िरी कड़ी लिखी ।
March 21, 2010
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