March 16, 2010

उन दिनों -64.

~~~~~~~उन दिनों -64 ~~~~~~~~
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स्थितप्रज्ञस्य का भाषा ?
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उनके बारे में सोचता हूँ, तो लगता है कि गीता श्लोक 54, अध्याय 2 में वर्णित लक्षण उन में काफी हद तक देखे जासकते हैंपिछले ब्लॉग में छान्दोग्य उपनिषद के बारे में श्री रमण महर्षि से बातचीत के जो अंश मैंने उद्धृत कियेहैं, उन्हें भी देखता हूँ, तो मुझे निश्चय होने लगता है कि वे एन्लाइटेन्ड अवश्य हैंमेरा मतलब है स्पिरिच्युअली- एन्लाइटेन्ड होने से हैलेकिन अब भी कई संदेह मन में कुलबुलाते रहते हैंक्योंकि ज़ाहिर है कि मैं तो नहीं हूँ, अभी स्पिरियुअली एन्लाइटेन्ड !
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दूसरे दिन मैंने सोचा कि कहीं मैं उनके साथ अन्याय तो नहीं कर रहा हूँ ! मुझे उन पर कोई प्रतिक्रिया देने से पहलेएक बार धीरज से उन्हें समझना चाहिएनहीं तो नुकसान मेरा ही है
सुबह वे अखबार पढ़ते रहेनाश्ता उन्होंने कब तैयार कर लिया, मुझे मालूम ही नहीं हो सकाजब मैं सोकर उठा, तो वे ड्रॉइंग-रूम में बैठे अखबार पढ़ रहे थेमुझे देखते ही अखबार पटककर किचन में चले गएमैं वॉश-बेसिनपर मुँह-हाथ धो ही रहा था, कि उनकी आवाज़ सुनाई दी,
'कौस्तुभ आपकी चाय ठंडी हो रही है ।'
दो बड़े मग्ज़ में चाय रखी थी, वे बस इंतज़ार कर रहे थेमेरे पहुँचते ही उन्होंने पीना शुरू कर दिया था
''अच्छी नींद आई आपको ?''
-उन्होंने मुस्कुराकर पूछा
रात में रोज की अपेक्षा कल मैं कुछ देर से सो सका था, इसलिए नींद देर से खुल पाई
कल की चर्चा से कुछ घबराया हुआ भी थानाश्ते का समय होते-होते मेरी घबराहट खो चुकी थी
''कल की चर्चा आश्चर्यजनक थी । ''
-मैंने अपेक्षा भरी नज़रें उन पर डालते हुए कहावे इंतज़ार कर रहे थेउन्होंने तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्तकी
''मतलब आपको भी किसी जमाने में ध्यान या मेडिटेशन जैसी किसी चीज़ में दिलचस्पी रही होगी !''
''हाँ, वो अजय की ही प्रेरणा थी, ऐसा भी कह सकते हैं । ''
अजय फिर वहाँ थाएक अमूर्त देह, निराकार उपस्थिति
''अजय की प्रेरणा ?''
-मैंने उन्हें उकसाया
''वह परेशान कर देता था । ''
वे हँसने लगे
''उससे बचने का यही तरीका था कि अपने आसन पर बैठकर ध्यान करोउस समय वह कभी भूलकर भी मुझेडिस्टर्ब नहीं करता था, और कोई कितना भी महत्त्वपूर्ण व्यक्ति जाए, वह ओंठों पर तर्जनी रखकर फुसफुसाता - '.. ! पापा ध्यान कर रहे हैं अभी ।' और खुद भी झूठमूठ ध्यान करने लगता । ''

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