June 05, 2024

कालज्ञ और दैवज्ञ

दो दिन पहले

अर्थात् 03-जून-2024 के दिन मैंने एक पोस्ट :

वृद्धजन राजनीतिक दल

के विचार को प्रस्तुत करते हुए लिखा था।

इससे पहले तमाम ज्योतिषियों और राजनीति के धुरंधर और कुशल विश्लेषणकर्ताओं की भविष्यवाणियों और भविष्यसूचक विवेचनाओं को इन्टरनेट पर सुनता और देखता रहा। हमेशा से मेरा यही तर्क रहा है : पहली बात यह कि भविष्य को कोई कभी जान ही नहीं सकता, और यद्यपि व्यक्ति विशेष के बारे में कोई भविष्यवक्ता उसके जीवन की किसी घटना विशेष की ऐसी भविष्यवाणी भी कर सकता हो जो कि समय आने पर सत्य भी सिद्ध हो जाए, किन्तु कोई भविष्यवक्ता किसी के भाग्य में लिखी घटना को रंचमात्र भी बदलने का दावा तो दूर, वादा तक नहीं कर सकता क्योंकि इसमें निहित विसंगति तर्क की दृष्टि से भी प्रत्यक्ष ही है। ऐसा इसलिए, क्योंकि तर्क की दृष्टि से यदि किसी भविष्यवक्ता ने किसी भावी घटना को पहले ही से यद्यपि और संभवतः ठीक ठीक "देख" भी लिया हो, तो इसके बाद उसे बदले जा सकने का प्रश्न ही नहीं उठता है, और यदि वह उस घटना को स्वरूपतः पूरी तरह या आंशिक रूप में भी बदलने का दावा या वादा करता हो तो यह भी स्पष्ट है कि उस घटना को उसने ठीक ठीक नहीं देखा था।

भौतिक विज्ञान कारणों और परिणामों के संबंध में कोई सुनिश्चित क्रम खोजने का प्रयास करता है। जिस विषय मेंह खोज की जाती है वह कोई इन्द्रियगम्य स्थूल विषय या मन-बुद्धि और तर्कगम्य सूक्ष्म विषय हो सकता है। समय / काल की अवधारणा अनुमान का विषय है और न तो इन्द्रियगम्य स्थूल या मन-बुद्धि और तर्कगम्य सूक्ष्म विषय है। वस्तुतः कोई ऐसा स्थान नहीं, जहाँ पर काल न हो, और स्थान के अभाव में काल का प्रमाण कहाँ और क्या हो सकता है! 

तात्पर्य यह कि काल और स्थान परसापर अन्योन्याश्रित होने से एक ही तथ्य के दो नाम हैं।

फिर भी व्यावहारिक दृष्टि से उनका उपयोग अवश्य है और उन दोनों के बीच तात्कालिक संतुलन भी स्थापित किया जा सकता है। इसे ही वर्तमान कहा जाता है जिसे काल या समय के अन्तर्गत ही स्वीकार किया जाता है। और यह भी सत्य है कि ऐसा कोई प्रत्यक्ष वर्तमान कहीं नहीं हो सकता जो सबके लिए सत्य हो।

फिर भी घटनाओं के क्रम की दृष्टि से इतिहास अतीत / भूतकाल का उपयोग भी है। उसी अतीत - जो स्मृति में ही पाया जाता है, और वर्तमान - जो एक दृष्टि से कल्पना और अनुमान-मात्र होता है, के आधार पर तथाकथित "भविष्य" के बारे में पूर्वानुमान लगाया जाता है जिसे भविष्यवाणी या भविष्यकथन का नाम दिया जाता है। 

यह सब अवश्य ही संदेहास्पद (full of ambiguity)  है और इसकी सत्यता किसी भी प्रकार से सिद्ध नहीं की जा सकती।

राजनीति की तरह यह भी लोगों की मूर्खता का शोषण करने का ही एक और प्रकार है।

हर मनुष्य अनायास ही किसी चमत्कार की सत्यता के बारे में जानने के लिए उत्सुक किन्तु शंकालु भी होता है क्योंकि यदि कोई चमत्कार कभी हो सकता है तो उसका जीवन अशाओं से भर सकता है। जैसे कवि प्रायः करते हैं। उदाहरण के लिए --

कैसे आकाश में सूराख हो नहीं सकता,

एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों!

03 जून 2024 तक सभी लोग - सत्तारूढ़ और विपक्ष के जो भविष्य में सत्तारूढ़ होने की लालसा से लालायित थे - ऐसे ही भविष्य की आशा के पूर्ण हो सकने और पूर्ण न हो सकने की आशंका से मोहित हो रहे थे।

कल यानी 04 जून 2024 के दिन शाम होते होते उनकी आशाएँ-आशंकाएँ कितनी पूर्ण या अपूर्ण हो सकीं, इस बारे में अभी भी उन्हें कुछ पता नहीं है, और अब वे सभी जोड़-तोड़ करने में जी जान से लगे हुए हैं - 

आशा बलवती राजन् शल्यो जेष्यति पाण्डवान्।।  

गीता के अध्याय १८ का यह श्लोक याद आता है -

अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम्।।

विविधाश्च पृथक्चेष्टा दैवं चैवात्र पञ्चमम्।।१४।।

न तो कोई कालज्ञ और न ही कोई दैवज्ञ भविष्य को कभी जान सकता है क्योंकि पातञ्जल योगसूत्र समाधिपाद ८ के अनुसार "भविष्य" 

विपर्यय नामक वृत्ति विशेष है जिसे इस प्रकार से परिभाषित किया गया है -

विपर्ययो मिथ्याज्ञानमतद्रूपप्रतिष्ठम्।।८।।

तो उसे बदलने की बात करना तो शशशृङ्ग जैसा ही है! 

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